कोई दुःखी है तो कोई सुखी है
कोई रोता है तो कोई हसता है
ये विपरीत तो प्रकृति की नियम है
इसे समझकर निर्लिप्त होना पड़ता है
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दु:खद कटा ये जीवन संक्षिप्त
रह-रह हुआ हृदय-मन विक्षिप्त
अब सीखा ये प्रेम व्यंजना
प्रेम में भी, मैं प्रेम से निर्लिप्त-
उगते और डूबते,
सूरज के
आगमन और प्रस्थान में,
बिना किसी भेदभाव के
आसमान एक ही रंग में
रंग जाया करता है, कि
निर्लिप्त, तटस्थ आसमान सदैव
हर स्थिति में समान रहता है।।-
#निर्लिप्त
मोह, माया से मुक्त
हर लगाव से मुक्त!
सुख, दुःख से मुक्त
भावनाओं से मुक्त!
राग, द्वेष से मुक्त
अनुराग से मुक्त!!
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बनना ही एक नदी हो,
तो एक पहाड़ी नदी बनें,
उछलते कूदते बस बहते ही रहें;
पथरीली राहों में कलकल बहें;
वृक्षों के शिखर पत्तियों को चूमें;
झरना बन कभी चट्टानों पर जा गिरें।
अभी तो समतल पर उतरे हैं,
बहना बहुत अभी बाकी है;
समन्दर तो समाना ही है;
निर्लिप्त भाव ही जीना है।
लेखनी दिलाती है याद बार बार,
बहुत स्याही अभी बाकी है; ठहर।
अभी तो लिखना शुरू ही किया है;
नदी का बहना बहुत अभी बाकी है।-