किसी मुलज़िमा पर अदालत न होगी,
किसी पाक दामन पे तोहमत न होगी,
अगर माँएँ बेटों को भी कुछ सिखा दें,
तो फिर बेटियों की ये हालत न होगी।
लाज़िम किया जाए मर्दों को पर्दा,
तो औरत की इतनी मुसीबत न होगी।
ये राधा, ये सीता, ये देवी बनाकर,
ये न सोचिए कि बग़ावत न होगी।
मगर औरतों! तुम भी कुछ कम नहीं हो,
न सोचो कि तुमसे शिकायत न होगी।
नहीं कर रही हो जो तुम ख़ुद की इज़्ज़त,
समझ लो तुम्हारी भी इज़्ज़त न होगी।-
अच्छा लगता था मुझे
तुम्हारा ऊंची डालियों से
मेरे लिए
शहतूत तोड़ना,
बारिश में
तुम्हारा ही छाता पकड़ना,
मचान से किताब उतारना,
अच्छा लगता था।
मैं नारीवादी हूँ,
अखरता है मुझे
पुरुष का ऊँचा कद,
फिर भी अच्छा लगता था
कभी-कभी मुझे
मेरा तुमसे छोटा रहना...-
मैं मनपसंद कपड़े कैसे पहनूंँ!
कैसे इतनी रात बाहर जाऊँ!
अभद्र टिप्पणी न सुननी पड़ें!
कोई छेड़छाड़ न कर दे!
अकेले यात्रा कैसे करूँ!
बलात्कार न हो जाए,
वर्ना जीने नहीं देगा समाज!
कैसे कहूँ कि मुझे किसी से प्रेम है!
चौराहे पर चाय? गाली गलौच?
मेरे माता-पिता तक पर प्रश्न उठेंगे,
संभव ही नहीं!
मुझे माता-पिता ने भी
दोयम दर्जे में रक्खा,
कुछ ने जन्म ही देना
व्यर्थ समझा... गर्भपात कर दिया...
क्योँकि मैं एक पुरुष हूँ...?
पुरुष क्या कभी समझेगा
स्त्री होना कैसा होता है!?
पुरुष ने कुछ भी
सहकर नहीं देखा...-
क्या ज़रूरी है?
अल्प वस्त्रों में अधखुले होकर
फूहड़ता दिखाना।
क्या ज़रूरी है?
अमृता, इन वक्षों को उभारना।
क्या ज़रूरी हैं तुम्हें
बाजारू आकर्षण बनाना।
इस तरह चलते हुए
फिल्मों सा नितम्बों को नचाना।
क्या ज़रूरी हैं?
मर्दाना शौक पाल लेना।
क्या ज़रूरी है?
नारी होकर गालियों में
नारीत्व को लजाना।
क्या जरूरी है ?
संस्कारों को ठेंगा दिखाना।-
तेरे माथे पे ये आँचल बहोत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल का एक परचम बना लेती तो अच्छा था।
-मजाज़
घरों के तो चिराग़ों को संभाला है बहोत तूने
तू एक लौ अपने दिल में भी जला लेती तो अच्छा था।-
नारीवाद के बहाने जाने कितने जिंदगी बर्बाद किये
इस इंसानों ने तो भगवानों के भी व्यापर किये
नफ़रत की दुनिया को छोड़ के
क्यों न हम साथ चलें-
*फेमिनिज़्म*
संगीत और साहित्य उनकी कॉमन रुचियां थीं। उनकी दोस्ती अब प्रेम में बदल रही थी।
एक दिन वे लंच पर मिले। लड़की ने कहा था कि मिलकर खाना बना लेंगे। पर उसने स्वीगी से मंगा लिया था। हंसते हुए उसने कहा, 'चाय बना लेता हूँ और भी एक दो चीजें आती हैं पर पारम्परिक भोजन जो लड़कियां बनाना जानती हैं, वह नहीं जानता'
इस जवाब से वह चौंक पड़ी थी। क्या लड़कियां ही परम्परा का निर्वाह करने के लिए बनी हैं? फिर बात बदलते हुए उसने कहा,' चलो, गिटार सुनाओ'
एक अच्छी धुन बजाते हुए उसने पूछा,
'तुम्हें कौन सा वाद्य यंत्र पसन्द है'
'मैं शहनाई सीख रही हूँ। मेरे टीचर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के शिष्य रह चुके हैं।'
लड़का नाक भौं सिकोड़ते हुए बोला,'शहनाई? यह क्यों चुना तुमने...शहनाई, सारंगी या तबला अमूमन लड़कियां नहीं बजातीं। मुझे ज़्यादा ख़ुशी होती यदि तुम वीणा या सितार कहती। ख़ैर छोड़ो इन बातों को।चलो तुम्हें अपनी लाइब्रेरी दिखाता हूँ।'
करीब तीन सौ किताबों से सजी बुक शेल्फ के सामने खड़े होकर लड़के ने पूछा, 'कैसी लगी मेरी लाइब्रेरी?'
लड़की ने कहा, 'अधूरी है। मुझे महिला राइटर्स की एक भी पुस्तक नहीं दिख रही। क्या महिलाओं की लेखनी तुम्हें पसन्द नहीं या उनके बारे में ऑब्सेस्ड हो।'
'नहीं ..नहीं...कभी एक्सप्लोर नहीं किया'
'ठीक है..एक्सप्लोर कर लो..फिर मिलते हैं'
लड़की उसे गुड बाई कह कर बाहर निकल गई।-
कितनी पाक है ये निवाले के लिए सिर्फ़ जिस्म बेचती है साहब...
कुछ ऐसे भी हैं यहां जो अय्याशी के लिए मुल्क तक का सौदा कर लेते हैं...-
बिन दुपट्टे के घर सें निकला करों
तुम स्वतंत्र हों
तुम इस स्वतंत्रता की थोड़ी लाज रखा करों
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