दि कु पां   ("दि कु पा उर्फ़ बीनू..")
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Joined 15 December 2020


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Joined 15 December 2020

हे नारी..
तेरे हर रूप को प्रणाम..
माँ.. इस रूप की वजह से ही तो धरा पर है इंसान
बहन.. पहली मित्र जिससे सब कुछ सिखा..
बेटी.. दूसरी मां
मौसी.. कुछ कुछ मां ही जैसी..
बुआ.. थोड़ा कड़क पर सामंजस्य बैठा लो तो सब कुछ मुठ्ठी में
चाची.. शरारतों की हमराज
दादी.. पापा की चाबी
नानी.. मम्मी की चाबी
साली.. पत्नी की चाबी थोड़ी सी घरवाली
सरहज.. थोड़ा सा कर लाज करो हंसी मजाक
सास.. जिनके कभी न होते पूरे आस..
महिला मित्र.. जिसमें दिखता है ये हर रूप..
सब रूपों को मेरा प्रणाम...

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सुनो... घटनाएं घटित हो जाती हैं, मूल कारण जो भी रहता हो.. पर मेरी समझ से आपका अपनी स्थिति के बारे में ज़रूरत से ज्यादा सोचना, चिंतित होना ही मूल है..
कुछ अल्फ़ाज़ चुभ जाते है जिंदगी में काफी गहरे से, जिन्हें निकलने में कभी कभी तो आप सफल हो जाते है कभी दांव पर सब कुछ लगा हार जाते हैं..
जिम्मेदारियों का बोझ सभी की आकांक्षाओं के खरे उतरने की लालसा में इंसान कुछ ऐसे निर्णय ले लेता है जिसमें वह गलत हो जाता है और बच्चों सहित पत्नी मां पिता को बता भी नहीं सकता कि उनके सपने टूटने का कारण कहीं न कहीं वो है..
और फिर घुट घुट जीता है वो पश्चाताप में..

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मेरे जमे हुए जज़्बातों को काश बिन शब्दों के तुम समझ जाते,
अपनी संवेदनाओं से मेरी वेदनाओं को छू भर लेते तो तुम..
तो जमे हुए मेरे अल्फ़ाज़ मेरी आंखों से अश्रु बन निकल जाते..
काश! सिर्फ बैठ कुछ क्षण संग हमारे बिन कुछ कहे.. हमें समझ जाते...!!

मुमकिन था मेरी उलझनो का समाधान तुम न कर पाते..
पर हां पा साथ तुम्हारा हम खुद ही सम्भल जाते..

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कौन समझेगा...???
क्या है रिश्ता हमारा....
कुछ ना हो कर भी...
बहुत कुछ है हमारा....

ना जन्मों का बंधन..
ना उम्मीदो का दामन...
ना पाने की चाहत..
ना बिछड़ने का ग़म...

कुछ तो है..
जो हमें खींचते है दोबारा..
यूं ख्यालों में रहता है..
तुम्हारा आना -जाना...

दुनिया के नजरों से परे..
बेनाम सा रिश्ता है हमारा...
Copied....

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सोचता हूं कभी
मेरा अस्तित्व कैक्टस के पौधे की तरह है कुछ
जो कभी कभार दिखने में ठीक लग सकता है
पर अस्तित्व ही जिसका कांटों से सजा है
न सुगंध है न दुर्गंध..
हां ये खासियत जरूर है
कुछ मिले तो सही न मिले तो सही..
रेगिस्तान में भी झेल जीवन के झंझावातों को जी लेता हूं...
न कोई आस है न पास है..
बस तपती रेत का साथ है..
हवा से चुरा नमी जी जाता हूं..
🙏🙏

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आशिक़ी चीज़ ही बड़ी बेवफ़ा है
ये हो जाती है जब तब आप हो जाते खास
तन्हाई में ही होते है उसके पास...
आप उसके उस समय रेखा पर आ जाते है
जो नितान्त होते है उसके अपने खास
जिन्हें वो नहीं बांटना चाहती है किसी से भी...

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बातें मेरी हों या किसी और की, क्या फ़र्क पड़ता है
जब किसी स्कैम का शिकार हो गंवा देते है आप अपना सब कुछ..
तब भरी भींड में अकेले तन्हा रह जाते है आप, हर आवाज़ सांत्वना की भी तोड़ती है आपको अंदर से
फिर जब आवाज़ उस नन्हीं सी जान की सुनते है आप की कोई नहीं पापा.. हम सब हैं न साथ.. तो तब पता चलता है कि कुछ तो ऐसा बोया मैंने जो नहीं चुरा सकता है कोई मुझसे न छीन सकता है कोई मुझसे.. बस फिर मृत शरीर में आ जाता है जीवन.. कर हिम्मत फिर खड़ा हो गया.. इस जीवन के झंझावातों के झेल आगे फिर उस तरह डट कर जी फिर सो जाने के लिए की कभी उठ ही न सकूं...

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घटनाएं घट जाती हैं
पीछे लकीर पीटते जज़्बात रह जाते हैं
यों नहीं है घटने के पहले ज्ञात न होता है
सब पता होते हुए भी
वक्त खराब हो तो घट ही जाती हैं..
एहसास होता है
जब न बचता कुछ कर गुजरने को
फिर हाय तौबा कर
पीछे लकीर पीटते जज़्बात रह जाते हैं...
वर्षों अर्जित मान मर्यादा
धन सम्पदा सब लूटा देने बाद भी
यदि सहारा दे कोई
मृत हो चुके स्वाभिमान को फिर जागृत कर
सकता है तो वो दो ही लोग होते है
या तो मां-बाप
या फिर आपका परिवार..
शुक्रगुजार बनिए ओर रहिए आपने परिवार और
अपने माता पिता का जब तक जीवन है तब तक..

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छुट्टी का दिन हो
और.. संग तेरा न हो
तो यार मज़ा नहीं आता..
बकवास ही सही मगर
साथ हो तुम्हारे लफ्ज़ों का
कि.. यार बिन तुम्हें सुने
मज़ा नहीं आता..
शेष....
फिर कभी..

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यार अभी पिछला
महीना तो था पूरा तुम्हारा
पूरा सप्ताह भर..
अब जेब बहुत तंग है
यूं देख अब हमें.. न करो..
घर में बैठो ऐश करेंगे..
वैसे भी बाहर बहुत गर्मी है..
😂😂

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