आँखें नीचे, चुन्नी सर पे
बारहा हो जाती है।
दादाजी घर आते हैं,
माँ बहू हो जाती है।
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किया प्रणाम छूआ लैग
दादा जी का खोला बैग
सोचा जिसमे होगा लड्डू
निकला उसमें मकई का सत्तू
खोला जैसे ही पैकेट दूजा
उसमें निकला चने का भुंजा
खाना था हमको बर्गर पिज्जा
बाबा लेकर आये भरवा मिच्चा
बोलो दादी क्या क्या दीं
बोले दादी भेजीं देशी घी
सेहत का बच्चों करो विचार
अच्छा है आंवले का अचार
लक्खठा,नमकीन में है स्वाद
दादा जी की बातें रखो याद।
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🥰दादाजी🥰
याद करूं जब बचपन अपने
कुछ सुनहरे पल याद आते हैं।
कुर्ता पैजामा संग पहने चासमा,
मेरे प्यारे दादाजी नज़र आते हैं।
पोते पोतियों संग खेला करते,
कभी भेद भाव ना करते थे।
फल मिठाई या हो टोपी,
सभिको बराबर देते थे।
रात होते ही आंगन में बैठे,
किस्त कहानियां सुनाते थे।
सही गलत का फर्क बताते,
अच्छे कर्म सिखाते थे ।
वक्त के साथ सभी,
आपको भूल जाते हैं ।
काश दादाजी आप होते तो,
बस यहीं हम कहे पाते है ।।-
उच्छिन्न मन हुआ विचलित,
कुछ पल सुगम प्रफुल्लित।
प्रेमयी पराकाष्ठाओं से परिपूर्ण,
एक दौर याद आया है।
बोझिल स्मृतियों से युक्त,
मृदुल मुस्कान कर उन्मुक्त।
याद कर कर जो चुभता है,
हृदय से वो ‘शूल’ हटाऊंगी।
बाबा संग बैठ पुरानी तस्वीरों से,
छटांक भर ‘धूल’ हटाऊंगी।-
पापा !
आप इस बार फिर नही आये ?
न हमने पटाखे फोड़े न दिये जलाये
पापा क्यों नही आये ?
माँ भी गुमसुम सी बैठी है
दादी माँ भी चुपचाप हैं
पापा बतलाओे क्या हमसे गुस्सा आप हैं ?
घर मे इस बार मिठाई भी नही आई है
न मेरे कपड़े , न बिट्टू की गुड़िया
न ही पूरी पकवान माँ ने बनाई हैं
पापा मेरा ये ख़त पाकर
छुट्टी लेकर आ जाना
दादी , दादाजी और माँ को
एक दम से चौका देना
पापा इस बार आ जाओ न ..-
✨मैं और मेरी पोती✨
साठ साल की उम्र मेरी अब
आठ बरस की पोती है।✨
बैठ बगल में आ के मेरे वह
धीरे धीरे कभी रोती है।✨
लिखना छोड़ मैं मध्य कभी
जब अर्ध यूँ सिर घुमाता हूँ।✨
ठीक बाएँ में देख उसे बड़े
प्यार से खूब सहलाता हूँ।✨
कहती हैं वह दादाजी!
मेरा तुमसे रहा ये वादा जी
मुझे तुम सा ही आगे बनना है।✨
काश लिखूँ मैं, लोग पढे़ं
अब दिल की यही तमन्ना है। ✨-
"दादाजी "
याद करु ज़ब बचपन अपनें,
कुछ सुनहरे पल याद आते हैं !
कुर्ता पैजामा संग पहने चश्मा,
हमारे प्यारे 'दादाजी' नज़र आते हैं !
पोते, पोतियों संग खेला करते,
कभी भेदभाव ना करते थे !
फल, मिठाइयाँ हो या टॉफी,
सभी को बराबर दिया करते थे !
रात होते ही आँगन में बैठ,
किस्से, कहानियाँ सुनाया करते थे !
सही गलत का फ़र्क बताते,
अच्छे कर्म सीखलाते थे !
वक़्त के साथ ज़ब बच्चे,
आपके सीख भूल जाते हैं !
काश 'दादाजी ' आप होते,
बस यही हम कह पाते हैं !
- Kartik Deo-
हमको हमारे इतिहास से जोड़ने वाली एक और कड़ी आज टूट गयी।
दादा जी के हाथ में जो हमारी डोर थी, हमेशा के लिए छूट गयी।
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