दुआ तो क्या, मेरी लानत की भी हक़दार नहीं है
छोड़ के जाने वाले की मुझ को दरकार नहीं है
किसी दौर में नसें काट के वक़्त काट लेते थे
कोई वक़्त अब माँगे, तो कहते हैं, "यार, नहीं है"
दफ़्तर गया हिज्र में भी, मैं दश्त नहीं भटका
क़ैस आशिक़ों का होगा, मेरा सरदार नहीं है
तरह तरह के ज़ख़्म बिछे रहते हैं मेरे तन पर
फिर भी मेरे पास ज़ख़्म का कारोबार नहीं है
जादूगर से उसके कर्तब का मत पूछ तरीक़ा
इतना जान ले, इश्क़ भुलाना पुर-असरार नहीं है
ग़म के शजर पे पत्थर मारें, हम पर नहीं जचेगा
वैसे भी वो पेड़ बिचारा अब फलदार नहीं है
सुनो मुसव्विर, ग़लत बनी है ये तस्वीर हमारी
निकल चुका है तीर, 'अमन' के दिल के पार नहीं है
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