मुझे दहेज़ चाहिए
(लिस्ट अनुशीर्षक में)-
ऐ ! ऊपर वाले तुझसे एक गुज़ारिश है
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कभी किसी गरीब को, बेटी का बाप ना बनाना।
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जहां बेटियां कौर,कुमारी,रानी जैसी उपाधियां लगाएं
कैसे संभव है,इस जमीं पर बेटियां अवांछित रह जाएं
ऐसे में यदि दहेज़ की समस्या का निवारण हो जाए,
भ्रूणहत्या के दंश का दायरा तो स्वयं ही सिमट जाए
बोझ बेटी नहीं दहेज़ है,किसी तरह इतना समझ जाएं,
कहीं ये ना हो कि हम ज़हर से ही ज़हर काटते रह जाएं-
सुला के मृत आत्मा को, ज़िंदा लाश को जगा के आया हूँ,
दहेज़ की लालच में झुलसी लड़की को दिलासा दिला के आया हूँ..!-
दहेज़
दहेज़ एक रोग है, पर लगती सभ्य समाज को
अत्यंत ही सुखद भोग है
लड़की बेची और खरीदी जाती है, पर किसी की नहीं आनाकानी है
यहां सबका रेट कार्ड है, सरकारी बाबू की हाई डिमांड है
प्राइवेट नौकरी पेशा भी घमंड में है, कहते हैं हम किसी से नहीं कम है
दिखावे का घिनौना खेल है, लेने देने वाले सामाजिक प्रतिस्पर्धा में मशरूफ हैं
कहते हैं रिश्ते तो भगवान बनाते है, फिर क्यों मोल भाव करते हैं?
आधुनिक युग में जीते है फिर भी दुर्व्यवहार पैसें के लिए करते हैं
शादी एक पवित्र बंधन है, पर बन गया एक व्यापार है
मांग पूरी करो तो लड़की बनकर रहेगी महारानी
वरना तानों के बाण चलेंगे और बनाकर रखेंगे नौकरानी
सदियों से चली आ रही कुरीति है, पर कोई बोलता नहीं अजीब ये नीति है
कुछ लड़कियां भी खुश है घर से मिले दहेज़ पर
उन्हें तसल्ली है कुछ तो मिला पिता की जमाई पूंजी पर
क्या अमीर क्या गरीब सभी लिप्त है इस कारोबार में
कितनी जिंदगियां तबाह हुई
ना जाने कितनी और दफन होंगी इसकी आग की लपटों में l-
ग्यारह लाख कैश
पाँच का सामान
तीन की एंगेजमेंट्
दो का खाना
और बाकी का खर्चा
एक तरफ़...
पच्चीस लाख का खरीदा
वो पच्चीस साल का दामाद
एक बेटी के पिता ने..!!
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