जो है उसी में ख़ुश रहना
गर सीख जाते हम
जीते बहुत आराम से
न होता कोई ग़म
सारा फ़साद है यही
सब सोचते सदा
मुझको तो कुछ मिला नहीं
औरों को मिल गया
तुलनात्मक स्तिथि से
ख़ुद को बचाते हम
जीते बहुत आराम से
न होता कोई ग़म-
छोटे बड़े का फ़ितूर तो कुछ यूँ चला रखा है
जो बताते है सख्सियत को विराट अपनी
गिरेबान उनका बुराइयों ने ख़ूब जकड़ रखा है-
"तुलना" क्या करूं मे किसी की अपने आप से
जब कोई मुझसा नहीं तो, मे क्यूं करूं परवाह!
तारीफ करनी है तो करे, तुलना नहीं
सोच बड़ी है, तुलना नहीं!
मै उस सौन्दर्य की तुलना से परे हूं,
मे, में हूं तुलना नहीं मैं मेरा आत्मविश्वास हूँ!!📝🖋️-
वो जगमगाते शहर वाली लड़की हैं,
मैं अंधेरा गांव वाला लड़का हूं..
वो कॉफी हाउस में कॉफी वाली लड़की हैं,
मैं टपरी में 5 रुपए की चाय वाला लड़का हूं..
वो महंगे अंग्रेजी मीडियम वाली लड़की हैं,
मैं सरकारी हिंदी मीडियम वाला लड़का हूं..
वो स्कूल के बाद कॉलेज ढूढ़ने वाली लड़की हैं,
मैं स्कूल के बाद नौकरी ढूढ़ने वाला लड़का हूँ..
वो आज को आज में जीने वाली लड़की हैं,
मैं आज को कल की फिक्र में जीने वाला लड़का हूं...
वो इस बढ़ती पेट्रोल में भी घूमने वाली लड़की हैं,
मैं इस बढ़ते पेट्रोल को देख पैदल चलने वाला लड़का हूं..
वो एक बड़े से शहर की लड़की हैं,
मैं एक छोटे से गांव का लड़का हूं....😁😁-
तुलनात्मक अच्छाई और बुराई से बेहतर तो खुद की परछाई है!
-नाविक-
आनंद आनंद नहीं रहा है क्योंकि लोग बदला लेने के रूप में आनंद के भावना को ले रहे हैं।
वे आनंद के भूखे हो जाते हैं और निरंतर और निरंतर आधार पर दूसरों के साथ खुशी और आनंद के मामले में प्रतिस्पर्धा और तुलना करने का प्रयास करते हैं।
ज्यादातर लोग दूसरों को नीचा दिखाकर खुश होते हैं और खुद को सबसे खुश व्यक्ति साबित करते हैं, यही असली बीमारी भी है।
यह अत्यधिक तुलना और ईर्ष्या रोग की ओर ले
जाता है।
कम से कम हमें खुशी और आनंद के मामले में प्रतिस्पर्धा और तुलना करने की ज़रूरत नहीं है...
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जे दिसत नाही त्याला मन घाबरते
जे कळत नाही त्याला मन वगळते
दिसूनही विद्रूप वागण्याला कवटाळते
समजूनही चुकीला पोटात घालते
न दिसणाऱ्या प्रत्येक शक्तीला देव मानते
न कळणाऱ्या शास्त्राला चमत्कार म्हणवते
देणाऱ्याला साधू तर घेणाऱ्याला अघोरी ठरवते
मिळाले तर आशीर्वाद, गमावले तर श्राप मानते
अंधाराला वाईट अन उजेडाला पवित्र मानते
काळ्याला अशुभ अन सफेदला शांतीदूत मानते
मन चांगलंवाईट सर्व आपल्याच तराजूने तोलत राहते
निसर्गाची समानता नाकारून उगाच हस्तक्षेप करत राहते-