देख रहा हूँ आसमान में एक अद्भुत नजारा
न कोई बादल न चाँद न ही कोई तारा
कुदरत के इस ब्लैकबोर्ड पर किसने डस्टर फेरा
मिटा डाला सूरज भी, कैसे हो अब सवेरा
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आसान नहीं होता जिंदगी के ब्लैकबोर्ड पर लिख कर मिटाना
अगर आओ मेरे जीवन में तो तुम डस्टर बन कर आना-
वो जिसे अपनी गलतियों का अहसास हो जाता है
वो अपनी ज़िंदगी का खुद ही डस्टर बन जाता है-
मैं चॉक से लिखता रहा
तुम डस्टर से मिटाती रही
प्रेम का पीरियड ख़तम हुआ
और दिल का ब्लैकबोर्ड
ख़ाली रह गया।-
एक डस्टर तो दो
फिर बताउँगी
कितना कुछ है मिटाने को....
(पूरी कविता अनुशीर्षक में)
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(1) लोग मानते है कि काला रंग अशुभ होता है ,
लेकिन उस स्कूल के ब्लैकबोर्ड का क्या
जो पूरी जिंदगी को शब्दों के रोशन कर देता है.....
(2) इस देश से दरिंदगी को मिटाना चाहेंगे ....-
ब्लैकबोर्ड सी कोरी जिन्दगी पर
तमन्नाओं की चाक से
लिखे थे कुछ सपने
अचानक किस्मत आयी..!
और डस्टर फेर गयी😥!
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शाश्वत सत्य सा ये
पाठशाला का ये ब्लैकबोर्ड
मरे शब्दों को जीवंत सा करता
था कभी वीरताओं को सहेजता
किंतु डिजिटल सामग्री ने
डस्टर से मिटा दिए वो जज़्बात
सरंचना से विखंडित होता अध्ययन का ये भवन
मशीनी युग में मशीनों का ईजाद करता ये भवन
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रोज़ लिखते-मिटाते रहे
ज़िंदगी के सबक हम
ब्लैकबोर्ड पर;
ये कब पता था कि
ज़िंदगी के ब्लैकबोर्ड का
कोई डस्टर नहीं होता...-
आत्मबल और साहस को जगाने के लिए अंधविश्वास और डर को मिटाना बहुत जरूरी है।
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