जब कुछ जिन्दगीयों का सर कलम
और बेजान जानवरों की कुर्बानी से
आप को जन्नत मिलती हैं तो आप को
आप का जन्नत मुबारक।
हम तो नर्क में ही सही है ।-
क्या जानवरों में भेदभाव दूर करने के लिए वाकई में सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं, तो क्या सूअर समाज (Pig community) को सम्मान मिलेगा जो स्वच्छता अभियान में अपना अमूल्य योगदान देते आ रहे हैं। कम से कम 30% आरक्षण तो बनता ही है।। मित्रों, क्या कहते हो?
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जानवरों की तकलीफ में
तड़पने वाले लोग
इंसानों को तकलीफ में
देखकर, मुसकुराते है।-
जो बिक गया कुछ नोटों में
उसे इंसान कैसे कह दूं
ज़मीर जानवरों में देखा
है जिंदा मैंने-
जानवरों से लगाव प्यार भी
हम इंसानो को
महान बनाता है जब एक
पशु पक्षी ऐ देख परख
लेता है इनसे मुझे किसी
प्रकार का कोई खतरा
नहीं है तो ही वो अपना समय
वहां देता है नहीं तो फिर
वो मौके की नज़ाकत
को देखते हुये सफलता के लिए
अपनी ऊँगली ढेडी कर लेता है और फिर
वहां से नौ दो ग्यारह हो
लेता है फिर कभी दोबारा वहां ना
लौटता है।-
जानवरों की इस बस्ती में
इंसान बनकर जीना चाहा
लकड़बग्घों ने जहां पांजा मारा
रक्षक शेर ने वहां जन्मचिंह बनाया
इंसाफ की इस जंगल में
मां बेहेन की इज्जत उछाली गई
मै चुप रहा और सुनता गया
ख़ुदको इतना नीचे गिरा ना पाया
हारने के लिए मेरा परिवार है
खोने के लिए सम्मान भी है
हार कर ताभितो बेजूवां हूं
नहीं तो आज कलम के जगह बंदूक़ होता
जानवर क़दमों में होती
और रक्षक पिंजड़े में होता
मौत भी आती तो कोई ग़म ना होता
कम से कम वो अंखरी नींद चैन का हुआ होता-