आख़िर..
छुपाने में इतनी मशक़्क़त क्यों करते हो, जाहिल!
“हमें तो जानने में ही दिलचस्पी नहीं”-
एक ज़माने से ,
काफ़ी बदल गए है हम .....
कभी रो - रो कर , सबको चोट दिखाते थे ,
आज आंसुओं को , तकिये के पीछे छुपाने लगे है हम .....-
जितनी मसक्कत से लगा
जमाना तुम्हे हमसे चुराने में
उससे ज्यादा मसक्कत लगी
तुम्हे अपने दिल मे छुपाने में।।।।।-
हाल-ए-दिल बताने से कुछ नहीं हासिल
इसलिए सारे तकलीफों को छुपा रहा था मै
निकलता आंख से आंसू तो बन जाता मजाक
इसलिए भरी महफ़िल में मुस्कुरा रहा था मै-
चुपके से दिल किसी का
चुराने में है मज़ा,
आँखों से दिल का हाल
महसूस करने में है मज़ा..!
जितना मज़ा नहीं है
नुमाइश में इश्क़ की,
उससे ज़्यादा इश्क़
छुपाने में है मज़ा...!!-
वो अपनी प्यास बुझाने
हर रोज कोठों पे जाते है।
फिर दुष्कर्मों को छुपाने,
ईश्वर को होटों पे लाते है।-
दूरियाँ कब बडी
जब तुम बदले बदले से नजर आने लगे
नजरअंदाज कर हमें मन ही मन मुस्कराने लगे
हर छोटी छोटी सी बात हमसे ही छुपाने लगे
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छोटी सी खुशी ही हासिल
हुई थी मुझेको के गमो के
बादल मंडराने लगे है
वो अपने गमो को मुझसे
छुपाने लगे है
है खता क्या मेरी पता नही
मुझेको वो किसी और को
अपना गम बताने लगे है
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दिलचस्पी रहीं नहीं हमें अब कुछ भी.. जानने में !!
जाहिल गँवार को समझाने के लिए मशक्कत करने में !!-