कि लब पे था जिसका नाम जब किया उसने मुझे बदनाम तो घुंघरू बांध लिए
मेरी चाहत मीरा जैसी थी मेरी सूरत गुड़िया जैसी थी मैं पाक गंगा जैसी थी एक रोज़ मैं सीता जैसी थी जो मेरे लिए था राम जब किया उसने मुझे बदनाम तो घुंघरू बांध लिए
अगर मैं एक शब्द का नाम लूं... 'कोठा' तो आपके मन में किसी महफ़िल में घुंघरू पहने कुछ नर्तक की छवि बनेगी। लेकिन यह अपने वास्तविक समय के कला केंद्र हुआ करते थे।
हवाओं की हथेली थाम कर चलने लगी हूँ मैं, तमन्नाओं के घुंँघरू बांँध कर चलने लगी हूँ मैं। छोटी सी ये दुनिया है और कितने सारे हैं ख़्वाब, ख़्वाबों को हक़ीक़त मान कर चलने लगी हूँ मैं।।