कि लब पे था जिसका नाम
जब किया उसने मुझे बदनाम
तो घुंघरू बांध लिए
मेरी चाहत मीरा जैसी थी
मेरी सूरत गुड़िया जैसी थी
मैं पाक गंगा जैसी थी
एक रोज़ मैं सीता जैसी थी
जो मेरे लिए था राम
जब किया उसने मुझे बदनाम
तो घुंघरू बांध लिए-
अगर मैं एक शब्द का नाम लूं... 'कोठा' तो आपके मन में किसी महफ़िल में घुंघरू पहने कुछ नर्तक की छवि बनेगी। लेकिन यह अपने वास्तविक समय के कला केंद्र हुआ करते थे।
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दीवाना मैं हूं कौन है दीवानी बताओ मुझे
लिख रहा हूं किसकी कहानी बताओ मुझे
बहोत तेज़ बज रहे हैं घुंघरू तवायफों के
बर्बाद हुई है किसकी जवानी बताओ मुझे।।-
बदनाम तवायफ़ जो घुँघरू पहनकर नाचती है वो साज है
मर्द आँखों में घुँघरू पहनता है और कहता है बड़ा नाज़ है-
हवाओं की हथेली थाम कर चलने लगी हूँ मैं,
तमन्नाओं के घुंँघरू बांँध कर चलने लगी हूँ मैं।
छोटी सी ये दुनिया है और कितने सारे हैं ख़्वाब,
ख़्वाबों को हक़ीक़त मान कर चलने लगी हूँ मैं।।
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पैंजनी में बांधकर तुझे सैर कराऊंगी
हाँ मैं तुम्हें पायल के घुंघरु बनाऊंगी-
तेरी रातों के ये जुगनू मेरी सुबह न होने दे
तेरी पाजेब की घुंघरु न सोती है न सोने दे
जब से बनी हो तुम हमारी आंख का आंसू
तुम्हारी याद में आंखें न रोती हैं न रोने दे
मेरा घर बस चुका होता बाद जाने के तेरे पर
मेरी धड़कन तेरी यादें न खोती हैं न खोने दे-
सुनो...
मेरी पायल के घुंघरू बड़े शरारती हैं
तुझसे बात करने के लिए
रोज़ खान खान बज उठाते हैं..!!
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उसने कहा था
मेघों के बरसने के साथ ही
बह जाएगा
उसके पैरों में बंधे ऋण का
मूल भी
और सूद भी
किन्तु हाय नियति !
इस कलुषित बंजर
मरुस्थल पर
ना मेघ ही बरसे
ना घूंघरू ही उतरे....-