अभी दिन है थोड़ी शाम होने दो यार,
बदनामी छोड़ ज़रा नाम होने दो यार।
कब से बैठे हैं यारों की महफिल में-
अब माहौल ज़रा गुलफाम होने दो यार।-
आवारगी में गुलफाम क्या काम कर गये
बस यूँ ही पैदा हुए थे और यूँ ही मर गये-
गुलबंद, गुलबदन फिरे गुलशन गुलशन...!
गुलफ़ाम, देख गुल, गुलज़ार गुलज़ार...!-
माहौल का रुख मुड़ जाने दो।
फूलों को जरा खिल जाने दो,
जमाने को खूब महकायेंगे हम-
साँवरे की कृपा बरस जाने दो।-
ज़मीं पर पांव रखता हूं तो खला में खो जाता हूं,
मैं नींद से जगता हूं तो उसकी बाह में सो जाता हूं,
बावफा वो ढूंढता है इतनी शिद्दत से खुद को मुझमें कि,
मैं उससे भाग के छुपता हूं गर तो उसी का हो जाता हूं।-
"नया रिश्ता भले ही
जीवन के चौथेपन में आए।
थोड़ा नाज़-नखरा कुछ
अदा, शोखी ज़रूरी है जी।
वरना सानने वाला बन्दा
एन कबाड़ मान लेता है।"
😊गुलफाम कली उवाचः😊
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पहन कर गुलबंद ,गुलबदन तू ग़ुरूर न कर
खिलेंगे न गुल ,गुलशन मे गुलेबहार के बाद
गुलाबी गुल की गुमा मे तुम , ये गुनाह न कर
गर ग़ुस्ताख़ रूठ जाये मिलिंद , गुल से तो
गुस्ताखी ये भी होगी आम की , बहारों मे भी
ये गुल खिलना भूल जायेंगे ,, मेरे जाने के बाद ....!-
ना हम गुलफाम है,
ना है कोई गुलाब हमारे लिए;
ताज्जुब इस बात की है...
पंखुड़ियाँ निकाल, ये काँटें हमें किसने दिए!!-
कभी कभी मेरी गली आया करो
गुलशन-ये-बाग सजाया करो
तुम न आते हो पतझड़ सा लगता है
तुम्हारे आते ही गुल-ये-बहार आती हैं-