तेरे सीने से लगकर, जो आंसू निकल रहे है
तेरी यादों के झरोखों को, कुछ कम कर रहे है
मुद्दतों बाद हमने धोएं है, दामन अपने
लगकर सीने से तेरे, जो पड़े आंचल में मेरे
कीमत न थी इस जहां में इनकी
छूएं जो तेरे दिल को, तो अनमोल हो गए
दिल को हुआ है सुकून आज
फिर परवान चढ़ा है गुरूर आज-
ये स्त्री तेरी खिलखिलाहट पर जग लूट गया
तेरी एक हंसी पर दिल झुक गया
जब हो सदगी से भरी तुम
देख तुमको आसमान भी झुक गया
तुम्हीं से है बहार गुलशन में
वरना क्या मजाल है फूलों की
जो बे वक्त खिल गया
झुकते हैं तेरी पहलू चांद और सितारे
समंदर भी उफान पर है मिट गए किनारे-
तुम से क्या अब बात करें
क्यों होने का तुम्हारे अहसास करें
समय का पहिया चलता जाएं
आज को बिता कल बनाएं
भुलाने के आगाज बहुत है
टेढ़ी टोपी नाज़ बहुत है
जब होते है दो और दो चार
तो क्यों करें पांचवें का अहसास-
ये जो तेरा झुमका है
इस में लटकता दिल है मेरा
ये जो चमक रहा है
इस में धड़कता दिल है मेरा
ये जो हौले से डोल रहा है
इस में भटकता दिल है मेरा-
हम अपनी ख्वाहिशों के कैदी
रिश्ता बड़ा पुराना है
डगर है टेढ़ी - मेढी दूर ठिकाना है
नज़रें है मंजिल पर पैरों में ठौर है
हम अपनी ख्वाहिशों के कैदी
बेड़ियों से जकड़े दिल है
कुछ है आज जैसा कुछ तो है पुराना
चाहत शायरी की रखते है
बातें चांद की करते हैं-
कुछ खिड़कियां खुलतीं ही नहीं
दीवारों की तरह हो गए मन के भाव
दरारें जो बिना कोशिश के भरती ही नहीं-
कुछ तो है इन रंगीनियों में
बेवजह रंगीन नहीं हुआ करते हैं
बड़ी खामोशियों में है ये समंदर
लहरें भी नमकीन हुआ करते हैं
देती है गवाही अपने ही ग़म की
दूसरों के सामने उठ-उठ के गिरा करते हैं
बेवजह उमड़ते नहीं तुफान इसमें
अपने ही वजूद को गिरा-गिरा के संभालते हैं-
रंगों की बहार में, रंगों के प्यार में
रंगों से रंग लिया,अपना तन-मन
रंगों से प्यार है, रंगों का खुमार है
रंगों का नाम दिया,रंग भरा जीवन
रंगों की फुहार है,रंग ज़श्न बहार है
रंगों का दिल बना, रंगों से सज गया
रंगों से भरा हुआ, जिंदगी का हर पल-
एक और दिन मिला जी लेते हैं
जिंदगी के दो घूंट पी लेते हैं
ए-शआम आज ज़श्न मनाते हैं
तुझसे किया वादा निभाते हैं
जब जिंदगानी के दो पल होते हैं
तो चल एक पल से तुझे रिझाते है
दूसरे पल का पता नहीं है
चल आज इसी पल में जी लेते हैं
माना कभी उमर हुआ करती थी
पर आज जो पल वो ही उमर है
हर इंसान बेजार हो गया है
अपनी ही रेखाओं में परवान हो गया है-
तुम्हें तरस नहीं आता
कितने लाचार हो गए
इस भरी दुनिया में बेजार हो गए
किसे सुनाएं कौन सुने
अपनी ही समस्याओं में
जानसार हो गए
आज दुनिया अंधी समाज बहरा हो गया
क्यों कि अनचाही हूकूमत का पहरा हो गया-