मानता मैं भगवती गायत्री माता जी को हूं
आराध्य मेरे महादेव शिव ॐ नमः शिवाय हैं
बनना मैं आनंद नर से नारायण चाहता हूं!
समय लक्ष्मी का है! जो नारायण बना जाए-
कौन कहता है 'भगवान नहीं है।
मैं मानता हूँ," हाँ मैंने देखा है।
मानव मन की शगुन अनुभूति उनके दर्शन करा सकती है।
उन्हें देखा भी जा सकता है, बातें भी कर सकते हैं। जैसे सभी से करते है"
किंतु भगवान को कौन चाहता है?
कोई चिंता करता है 'भगवान' की? कोई नहीं!
लोग अपने बच्चों के लिए रोते हैं,
अपने 'प्रेमी, प्रेमिकाओं'' के लिए रोते हैं,
गरीबी के लिए रोते हैं,
पैसों के लिए रोते हैं,
कोई भगवान के लिए रोता है? कोई नहीं…
अरे सरल भाव से 'माँ' को पुकारें तो सही
माता स्वयं मिलने चली आती है।....— % &-
हे,करुणामई माते
आप श्री नहीं
किंतु श्री लगती है
आप माता सरस्वती नहीं
किंतु माता सरस्वती लगती है
आप देवी पार्वती नहीं
किंतु देवी पार्वती लगती है
आप तो इन तीनों का सम्मिलित रूप लगती है
ब्रह्मा, विष्णु, महादेव
अद्वितीय शक्तियों अद्भुत ज्योति भी आप में निहित दिखती है।
मेरा इससे बढ़कर सौभाग्य और क्या होगा
कि मैं आपका भक्त हूं।
कि मैं ही आपका पुत्र भी हूं।......
..— % &-
आज भी मौजूद है निशां मेरी रूह पर
तेरी चाहत के कदमों के
सुन,हमने किसी और को
उस तरफ चलने की इजाज़त दी ही नहीं-
लिख कर नाम तुम्हारा,कभी खुश हुआ करते थे
मिटा कर अब उसी नाम को जार-जार रोया करते हैं-
कामधेनु हो गंगा गीता तुम चार वेद की माता,
चौबीस अक्षर तुम में समाते तुम सब सुखों की दाता,
जो अज्ञानी वो पावे ज्ञान शरण जो आप की जाता,
जो करता मन से सुमिरन प्रकाश जीवन में पाता।-
मेरे चीखने पर पूरा आसमान रोया है,
तुम्हें क्या पता, तुझे पाने के लिए
मैंने क्या क्या खोया है।-
वेदानां जननीं नौमि गायत्रीं ब्रह्मरूपिणीम्।
देवीं ज्ञानमयीं शक्तिं शाश्वतज्ञानदायिनीम्।।-
आप सब को निर्जला एकादशी व्रत
और
गायत्री जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🙏🙏🙏🙎🙎🙎🙎-
छन्दसां जननीं नौमि गायत्रीं वेदध्यायिनीम् ।
द्विजत्वदायिनीमम्बां मतिमेधाप्रदायिनीम्।।
वेदों की माता, वेदों द्वारा स्तुत, बुद्धि और मेधा को देने वाली तथा द्विजत्व प्रदान करने वाली माँ गायत्री को नमन करता हूँ ।-