अंकित कुमार शर्मा  
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° "शिवोऽहम्" °

• फॉलो व्यक्ति को नहीं रचना को करता हूँ।।
Joined 2 January 2019


° "शिवोऽहम्" °

• फॉलो व्यक्ति को नहीं रचना को करता हूँ।।
Joined 2 January 2019

आज अचानक प्रतिबन्धों को तोड तोड कर
सहसा उतरा चन्द्र अटारी के मस्तक पर
आज तुम्हारे परिमित शब्दों की ध्वनियों पर
नाच रहा मेरा जीवन आनन्दित होकर।


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वेदगीतापुराणादिभिर्व्यापृता
गीतसङ्गीतवाद्यादिभिर्वन्दिता।
वीरपुरुषैस्सदा वन्दिता वर्धिता
भारतीभूरियं पातु नो वत्सला।।
यत्र गङ्गापुनीता सरित्क्रीडति
यस्य मौलौ हि बद्रीश राराजते।
पादपद्मं स्वयं नीरधिस्सेवते
भारतीभूरियं पातु नो वत्सला ।।
वीरराणाशिवापुष्यमित्रादिभिः
रक्षिता संस्कृतिर्धर्मकेतुस्तथा।
यस्य पुण्याः प्रजाः राष्ट्रभक्त्यां रताः
भारतीभूरियं पातु नो वत्सला।। — % &

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धाता धर के लेखनी कर
कर दिया अंकित विरह में
और ये अक्षर तुम्हारे
पितामह कैसे मिटाऊँ
क्या सतत यदि गुनगुनाऊँ
विरह के ही छन्द गाऊँ?

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एक स्मित पर है समर्पित समर्चन की युग-ऋचाएं।
हृदय में संरचित नर्तित प्रेम की मधुमय लताएं।।
दीप्त भूषण वसन हृद्य हृद्य अभ्रू भंगिमाएं।
करती हैं वटु को चलित वक्रित विनम्र कनीनिकाएं।।
सुन्दरी कृष्णिम तरङ्गित केशराशि की छटाएं।
हों विधाता के करों की रचनधर्मी तूलिकाएं।।
बोल के स्रंसित रसों में घोल के अधरों की हाला।
चाह है पीते रहें बस आप आजीवन पिलाएं।।
हास हो यदि संग हों अथवा स्मृति संस्मारिकाएं।
जीयें सदा पाणिग्रहित आकण्ठ लग अन्यत्र जाएं।।
प्रेम की लौकिक प्रथा में हार ना ना मरण जीवन।
हम परस्पर प्रेम दें यूँ निज देह भी ना भान पाएं।।

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शब्द में निर्व्याज हूँ, हूँ मौन में विश्रान्त मैं
अभिमान में हूँ दीन अरु कारुण्य में सम्भ्रान्त मैं।

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कस्यचिन्नोपादानं प्रेम्णः दुःखँल्लाघवम्।
हानःप्रेमप्रदानस्य तद्दुःखङ्गौरवात् परम्।।

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साहित्यरसपीयूषमुग्धमधुकरे नतिः।
फुल्लनं मोक्षरागेण वटुहृत्पुष्परोचिषः।।

कान्तालोचनलोलस्य स्थैर्यङ्कान्तावलोकनम्।
शास्त्रविभ्रमचित्तानां स्थैर्यं रागः गुरोर्गिरि।।

म्रीयन्ते मारणाल्लोके स्थावराः जङ्गमास्तथा।
श्रीगुरुमारणाद्भूयः जीवनमेव प्राप्यते।।

भोज्यं भोज्यं प्रसादो न यावन्न तुलसीदलम्।
शंवम् शास्त्रन्नतच्छंवो यावन्न गुरुसेवनम्।।

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प्रेमिणि प्रेमिणस्स्पर्शो नित्यन्नवस्सनातनः।
सतः यथा सतोत्पत्तिः प्रेमब्रह्ममयन्तथा।।

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तुममें अंकुरित प्रणय का
प्रतिफल प्रयाण ही तो था।

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रक्तिम प्रभा में व्योम है
प्रिय दे रहा है लालिमा
कर अधर का श्ऋंगार फिर
पूरी करो मनःकामना
क्योंकि अधर ही सोम है।
रक्तिम प्रभा में व्योम है ।।

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