खोट नजरों का और सजा हिजाब को
या!ख़ुदा इसका कैसे अब हिसाब हो....— % &-
बेवजह खुद को नाशाद कर रहा हूं मैं
उस कमबख्त पर वक्त बर्बाद कर रहा हुं मैं
हर रोज उसे भूलने की कश्मकश में
हर रोज उसे घंटो याद कर रहा हूं मैं-
ज़माना बड़ा खराब है मेरे दोस्त,
यहां दर्द में चीखते बिलखते रहो तो लोग देख कर
मजे ले लेते है,
और अगर तुम्हारे चेहरे पर कभी मुस्कान दिख जाये
तो वजह पूछ लेते हैं...-
काश ऐसा हो कि वो मेरी बातों में आ जाए
कहना माने मेरा और मुझमें बिखर जाए
एक रोज मेरा जादू चले उसके बदन पर
वो मेरे करीब आकर तहजीब भूल जाए
हम दोनों बेहिसाब लापरवाही बरते और
हर पेतरें को एक मुकाम तक ले जाएं
उसके बालों को समेटकर ताक पर रख दूँ
फिर हम दोनों एक हद से गुजर जाए
हमारे जख़्म गीले रहें एक मुद्दत तक
दोनो चाहकर भी किसी को बता ना पाएं
"कपिल" सपनों की कोई तादात नई होती
कम से कम हम इस मुकाम तक तो जाए-
समय खराब है इस लिए मौन हु
बाद में बताऊंगा में कौन हूं
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हुस्न के साथ मतलबी नकाब निकलता है।
अक्सर चमकता सोना खराब निकलता है।-
अथक मेहनत पर भी कैसे हालत कर देती है
बेमौसम बारिश किसानों की जिंदगी ख़राब कर देती हैं।-
मेरी नसीहतों से ज्यादा मशहूर यहाँ, मेरी लिखी हर किताब हुई,
कोई समझा नहीं एक हर्फ भी, किसी के हर सवाल का जवाब हुई।
हर तरफ शोर था मेरे नाम को लेकर, लोग कर रहे काना - फूसी थे,
कोई अमल में लाकर सुकून में था, तो किसी की जिंदगी खराब हुई।
पहुँचा ये कोहराम मुझ तक जब, लाखों लोग हो चुके मेरे दीवाने थे,
किसी का सब डूब गया, किसी को मिली पाई - पाई का हिसाब हुई।
लगनी ही थी, और लगी भी पुरजोर तोहमत 'कुमार' जमाने की,
किसी की हुई दुआ-ओ-मुराद पूरी, किसी के लिए अधूरा ख्वाब हुई।
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"यहाँ धुआँ है नशा है शराब है शबाब है
कौन कहता है कि ये जमाना खराब है"-