जिंदगी में हम कुछ बन पायें या नहीं
लेकिन एक अच्छा इंसान बनने की
कोशिश हमेशा करनी चाहिए......💞-
बात तबकी है जब बहुत छोटा था, गांव में रहता था।
रात को दादी घर का सारा काम निपटा
खुले आंगन में खटिये पे सोने जाती, गर्मियों में।
मैं दौड़ के उनके पास जाता।
हर दिन नई कहानी सुनाती।
कभी कभी बहुत देर रात हो जाती।
तो वो सारे तारों के बारे में बताती। मैं तारे गिनने की कोशिश करते रहता।
कोशिश आज भी जारी है
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जो चाहा ज़िन्दगी में वो मिला ही नहीं
जो मिल गया उसकी कोशिश भी कहाँ की-
अंधेरा घना... तू तन्हा चल रे मनां
साथ किसके कोई आया है कहाँ
ख़्वाइशों के शज़र माना ऊंचे बड़े
फ़ूल-फल जब आयेंगे तो झुक जायेगा तना
अंधेरा घना... तू तन्हा चल रे मनां..!-
आजकल वो हमारी बातों का मतलब ना समझते हैं ना समझने की कोशिश करते हैं।
लगता हैं जैसे हमसे जुड़ा हुआ उनका
मतलब अब पूरा हो गया हैं।-
काली-सफ़ेद है, माना कोई रंग नहीं है
थोड़ी मुश्किल है पऱ ज़िन्दगी तंग नहीं है,
सभी को सभी कुछ तो मिलता नहीं यहां
बता ए दिल यहाँ ऐसा कौन है
जो अपंग नहीं है..!-
मांगूंगा फिऱ से तुझे...,
ए "चाँद" तू दिल से नहीं
सिर्फ़ मेरे हाथ से छुटा है,
अभी तो पूरी रात वाकी है
अभी तो सिर्फ एक ही तारा टूटा है..!-
रास्ते चौराहे में सब ओर से हैं
चलो.. "ज़िन्दगी" का रुख मोड़ते हैं
"माँझी".. पतवार तेरे हाथों में है
दिल चल.. कश्ती को तूफानों में छोड़ते हैं,
कठोर ही सही राह ख़्वाबों की
यह पत्थर.. धीरे-धीरे तोड़ते हैं,
माना.. ऊंची डगर हफां देगी
पऱ पांव हैं के मैदानों में दौड़ते हैं,
हम "शून्य"... को तन्हा क्यूँ रहने दें
उसमें क्यूँ ना.. एक औऱ अंक जोड़ते हैं!!-
अब बयाँ नहीं किया जाता है
हाल अपने दिल का,
हुआ कुछ और था
और बयां कुछ और हो जाता हैं
-
उन शब्दों को उकेरने की
जो जेहन की सिलवटों में
एक उम्र से भटक रहे हैं
वो जो जुबां तक आते आते रह गये थे
वो जो रोजमर्रा की दौड़ में
दरकिनार कर दिये जाते हैं
वो जो तब हमारे पास आते हैं
जब कोई पास नहीं होता
मन की खिड़कियों से झांकते हुए
उस विचार रूपी चाभी की तलाश में
जो मन के दरवाजे खोल देगा
और उन शब्दों को एक माध्यम देगा
कभी वाणी, कभी कलम का
कब आयेगा वो विचार (🔑)
अब तो बस उसी का इंतजार है-