कैसे भूल जाऊँ इस सर्द भरी दिसंबर को,
जिसको वापस आने में फिर से एक साल तक इंतज़ार करना पड़े...!-
कैसे तुम्हे भूल जाऊं,मेरे कतरे-कतरे में बसी हो तुम।
मेरी पहली तो नही लेकिन मेरी आखरी मोहब्बत हो तुम।-
आसमां को जमीं लिख दूं क्या,
चांदनी को घटा लिख दूं क्या,
बहते पानी को आग लिख दूं क्या,
लिखें थे जो खत प्यार के तुमने रातों को सबसे छूपकर,
कहो तो उन्हें जला दूं क्या,
कहते तो हो भूल जाओ मुझे ।।-
दिल रोता हैं देख उनको जूठन खाते देख,
कैसे हो रही शर्मशार मानवता आज ये देख,
मानव के अंदर ह्रदय नहीं लगता ये सब देख,
हरिजनों के अंदर तो जैसे बसती ही नहीं रूह,
नफरत सी होने लगी गांव में ये सब होता देख,
छुआछूत एवं अन्धविश्वास का होता कैसा खेल,
बहुत तकलीफ़ होती है पुखराज को ये सब देख ।-
कैसे उन लम्हों को भुला दिया जाए,
दफ़नाया जाए या मिटा दिया जाए!
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वो तो रुह मे शामिल हैं मेरे हमेशा से,
ये कैसे उनको इत्तिला किया जाए!
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जब साथ थे तो जान हुआ करते थे,
यूँ हीं अपनी जान से कैसे जुदा किया जाए!
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वो तो आज भी हर रात ख़्वाबों में आते हैं,
कैसे ज़हन के क़ैद से अब रिहा किया जाए।
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"कोशिश"तो यही रहती है कि
'तुम्हें भूला' दूँ...पर
"आदत" है तेरी
अब कैसे इस "दिल" को समझाऊँ...!!-
मेरा ज़मीर मुझे इजाज़त नहीं देता,
कि उस फरेब करने वाले को अपने दिल में बैठा लू।
जो कभी हमारे हो ही नहीं सकते,
कैसे मैं उनसे इश्क़ लड़ा लूं।-
उसको मुझे छोड़े हुए एक अरसा बीत गया है,,
परन्तु आज भी उसकी हर एक तस्वीर
अपने मोबाइल में सेव करके रखे हुए हूँ..!!-