कि, पिता जी तो हस्ती ही बड़ी हैं...
तभी तो सारी मुश्किलें सहमे खड़ी हैं...
अगर ये हिल जाएं तो सब बिखर जाए..
क्योंकि यही छत और यही कड़ी हैं....!!-
कि, सब कुछ जो तुम्हे लगता है तुम्हारा है..,
वो असल में भ्रम का इशारा है...!-
मेरी मां का आंचल बहुत बड़ा है,
शायद तभी मेरी सारी कमियां, खामियां उसमें छिप जाती हैं..!-
चिंता से चतुराई घटे, दुःख से घटे शरीर...,
लाभ से लक्ष्मी घटे कह गए संत कबीर...!
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कि, ये जो मेरी जिन्दगी में खामोशियों का शोर है...,
इन पर सिर्फ़ उसका ज़ोर है...!!-
कि,
एक तुम कमाल...
दूजा तुम्हारा ये शहर बवाल...!
जो आए सो खो जाए
ग़ज़ब ये जंजाल...!!-
कि,
बिखरी काली रात मे चाँद की लाली चहुँओर है...
और तुम्हारा ये बिंब नदी में जैसे होने वाली भौर है...!-
कि, वो तेज सुलगती गर्मी में मुरझाए फ़ूल सी जिन्दगी मेरी,
और उसमें पानी की ठंडक सा इश्क़ तेरा...!-
Dooriyan
Ab Toh Kaafi Waqt Ho Gaya Unse Mulakat Hue...
Aur Maano Ek Arsa Beet Gaya Vartalap Hue.. !-
कि, जनाब ये रिश्ते हैं
इनमे अनबन तो लगी ही रहती है..,
कभी खुशी तो कभी ग़म की
स्थिति बनी ही रहती है..,
हमने सीख लिया इनके साथ जीना
और इन्हें साथ लेकर चलना
यूं कभी हमारी तो कभी उनकी
तानाशाही चलती ही रहती है...!!-