मतलब मेरे जहान में , 'मिट्टी' के ढेर सा
जिस 'रंग' चाहे ढाल लो , 'सांचे' में जिस मुझे-
कुम्हार माटी के हम, चिराग़ दीपक का जलाते है
करते जो नफ़रत की बातें उसे भी जीना सिखाते है
हाथों में है सुगंध मेरी, ख़ूबसूरती से घर महकाता हूं
बनाकर माटी के खिलौने, महल अपना सजाता हूं
खिल उठता है दर्पण मन का, नीर जब कहलाता हूं
विपत्ति बादा ना टूटे, वो जंजीर को तोड़ जाता हूं
ये माटी हमारी पहचान है यह पहचान से जाने जाते
दूर दूर से आते लोग, आकर खुशियां हमसे ले जाते
अहमियत मेरे पैसों से यहां, कभी मत लगाना तुम
माटी के कर्ज तुम यहां, कभी ना चुका पाओगे तुम
कुम्हार माटी के हम, चिराग़ दीपक का जलाते है
करते जो नफ़रत की बातें उसे भी जीना सिखाते है-
खुद को सांचे मे ढाल रहे
जैसे चाक की चाल को खुद -ब-
खुद पहचान रहे !-
बिगाड़ कर खुदको...
सँवारा भी हमने...
बिके भी हम...
कीमत से ज्याद़ा...
आज नज़रअंदाज़ करने वाली...
आँखों को पसंद आते हैं हम...🙂-
,
मनचाहे सांचे में ढल सकते हैं|
जिस रंग में हम रंगना चाहे,
उस रंग में खुद को रंग सकते हैं||-
हम कुम्हार अपनी माटी के ,जैसा चाहें बन जाएं,
चाहे विवेकानंद बनें हम या बेनामी में मर जाएँ.
चाहे सस्ते भाड़ सरीखे, उपयोगित हो फेंकें जाएं,
या स्वर्ण कलश बनकर जग में, सदियों तक पूजे जाएं.
हम कारीगर स्व जीवन के ,चाहें तो इतिहास रच जाएं,
या फिर औने - पौनें सा जीकर, गुमनामी में खो जाएं .
सोचें खुद के जीवन - मिट्टी के, हम कैसे कुम्हार बनेंगे,
प्रेरणास्रोत या तिरस्कृत मूरत ! खुद का कैसा रूप गढ़ेंगे.-
जनाज़े से पूछना कभी, हकीकत में क़ज़ा क्या है,
वफ़ादार में वफ़ा नहीं, फिर असलियत में वफ़ा क्या है।
एक इश्क़ के मरीज़ को कल, बरसों बाद मुस्कुराते देखा,
फ़िर दिखे तो पूछूँ उससे, इस मर्ज़ का दवा क्या है।
सजदे में रहकर घन्टों रोया, कोई असर नहीं था फिर भी,
ख़ुदा दिखे तो पूछूँ अब मैं, उसे माँगने का दुआ क्या है।
मंज़र खुशनुमा लगने लगती, मोहब्बत हो अगर किसीसे,
इन मोहब्बत के गलियों में, पूछो आब-ओ-हवा क्या है।
इस कदर शर्मिंदा हुआ है, हर नमाज़ में यह क़ासिम,
पूछ लेना आकर फुर्सत में, वजह क्या है ख़ता क्या है।-
कूज़ा-गर उसके मुँह को तैयार कर मिट्टी में
सनम मेरा पत्थर है के कुछ बोलता नहीं-
कुम्हार से मूर्ति-दिये ले
ऑनलाइन युग है जनाब,चीन से लक्ष्मी-गणेश मगाएँगे-
हमे ख़ुद से ख़ुद को बनाना हैं..
एक वही हैं अपना जग में बाकी सब बेगाना हैं...
प्रभु को पाने के लिए मानव काया एक बहाना हैं..
नैया हो गई भवसागर पार उनकी जिन्होंने इसको जाना हैं...
जैसा करेंगे दुसरो के साथ वैसा ही यहाँ पाना हैं..
इस छोटी से जिंदगी में कुछ पल के लिए ही सबको दिल से हसाना हैं
करेंगे माँ पिता की सेवा तो अपना सबके दिलों में ठिकाना हैं...
किस लिए तू कमाता ए बंदे सब यही धरा रह जाना हैं...
Part1-