काशी के लोग किसी को सम्मानित करना कम जानते हैं, सम्मानित होने में उनकी रुचि अधिक होती है - काशी में ही तुलसीदास ने लिखा था -
बहुत प्रीति पुजाइबे की, पूजिबे की थोर।-
हमेशा तुम सोचते हो, मैं कौन हूं...
मैं निष्पक्ष हूं, निष्काम हूं
हर मन में बैठा राम हूं
मैं साकार हूं, निराकार हूं
तेरा तुझसे साक्षात्कार हूं
मैं स्वयंभू जागृत विवेक हूं
शिवलिंग का रूद्राभिषेक हूं
मैं परमज्ञानी, मैं निर्गुण हूं
कन्हैया की बांसुरी की मधुर धुन हूं
मैं अनंत हूं, अविनाशी हूं
मैं मथुरा, अयोध्या, काशी हूं
मैं शक्ति हूं, अतिसूक्ष्म हूं
मैं जगतपति, परम सत्य सम्पूर्ण हूं !!-
दुःखी मत होओ
मणिकर्णिका,
दुःख तुम्हें शोभा नहीं देता।
ऐसे भी श्मशान हैं
जहाँ एक भी शव नहीं आता
आता भी है,
तो गंगा में
नहलाया नहीं जाता— % &-
मैं तारिणी आप काशी !..
मैं काशी का वो अनन्त छोर,
जो काशी के आरम्भ के साथ ही,
वो अन्तिम तृष्णा का स्रोत हूं मैं।
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आपसे मेरा सर्वस्व हो
और मेरा सर्वस्व आपसे हो
बस यहीं चाह है प्रियवर!..
Read caption!.💕— % &-
और हम दोनों उस बहती धारा में
एक-दूसरे का हाथ पकड़
चलेंगे एक ऐसे संसार में
जहां प्रेमी, प्रेमिका तथा प्रेम
पृथक-पृथक ना होकर
समाहित होंगे एक शून्य में...
हां! उस शून्य में
जो अमर होगा,
शाश्वत होगा,
इस संसार से परे होगा,
जहां कोई समाज नहीं होगा,
कोई बंधन नहीं होगा,
यदि कुछ होगा
तो केवल 'प्रेम'.....'विशुद्ध प्रेम'...!
(कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें)-
एक तो काशीवासी, उपर से खूबसूरत,
और फिर इंग्लिश भी बोलती है।
या खुदा,
मेरे मरने का सारा इंतजाम कर रखा है।-
तू बन जाए ''रांझणा" बनारस के घाटों का ,,
और मैं तेरी आंखों में बसा वो इंतजार बनू ।।
❤️❤️-
काशी हीं मधुबन हो जाए
विश्वनाथ धड़कन हो जाए
नयनों में उज्जैन बसे तो
संन्यासी ये मन हो जाए
सोमनाथ का करें स्मरण
मल्लिका अर्जुन तन हो जाए-
काबा काशी ढूँढ़ता, अल्ला राम शिवायः
महतारी घर में पड़ी, खाँस खाँस मर जाय-