गुजरने लगे काफिले
अरमानो के
उन उजङे हुये
वीरानों से
देती थी जिंदगी
दस्तक कभी
मोहब्बत के
पैगामो से-
मैं ख़ामोश थी मगर दिल सदा रोता रहा
लबों पे मुस्कान आँसू पलकें भिगोता रहा
यूं तो मिले हमको जिंदगी में काफिले बेहिसाब
मगर ये कमबख़्त दिल अकेला ही चलता रहा-
लगा कि धोखेबाज़ी का जमावजा इधर ही है,
पर बाहर निकल कर देखा तो,
वहाँ काफिला कुछ ज़्यादा ही था-
तुम मना रहे जश्न,खेल जो कि मैंने खेला ही नहीं
मेरी दुनिया में हार - जीत का कोई मेला ही नहीं ।
तुम करते रहे साजिशें ताउम्र, मेरे अंतिम सफर की
मेरी दुनिया ने जिन्दगी को हमसफर माना ही नहीं।
तुम रख खंजर बगल में,मिलते रहे बड़े प्रेम से गले
मेरी दुनिया में छल-कपट का ताना-बाना ही नहीं।
तुम शामिल उस भीड़ में,जहाँ नैतिकता का निशां नहीं
मेरी दुनिया में ऐसी खुदगर्जी का काफिला ही नहीं।
तुम सजाते रहे वदन-बदन, छिपाते रहे कलुषित मन
मेरी दुनिया में सादगी के बिना जीना गवारा ही नहीं।
तुम जो अहं के उन्माद में ठहराते रहे मुझको पागल
मेरी दुनिया में सामान्य होने की परिभाषा ही नहीं।-
बिछड़ने लगा है मुझसे मेरे अब अज़ीज़ों का काफिला.....
शायद मैं अब सबसे सच बोलने लगा हूँ-
MuJhe TeRe Kaafile Me,
Chalane Ka Koi SHouK NHi Hai...
❤️ JaaN-E-MaN ❤️
Magar Koi TeRe SaTh,
ChaLe MuJe AccHa NaHi Lagta...-