कई बार तुम्हारे शब्द
ध्वनि बन जाते हैं
होती रहती है उनकी आवृत्ति
मैं बन्द रखती हूं कान
कि मन पर उनका स्पंदन होता रहे
धड़कन बनकर
आवृत्ति-दर-आवृत्ति.-
जीने का मज़ा किरकिरा करते हैं
सिर्फ दो किस्म के लोग,
एक तो कान भरने वाले, और
दूसरे कच्चे कान वाले!-
नन्दी तेरे कान में
बोलूँ मैं क्या बात रे
मन में जो भी है मेरे
महादेव को ज्ञात रे
-
सुनो ,
तुम्हारी आँखों के अंदर का,
जो काले रंग का गोला है,
बो आसमान में ब्लैक होल के समान है,
जिसमे न जाने कितने अनकहे छुपे राज है।
तुम्हारे कानो से जो दिल मे जाने का रास्ता है,
वो किसी बरमूडा ट्राइंगल से कम नही है।
जिसमे न जाने कितनों के ,
डूबे हुए दिल के जहाज है।
तुमने जो अभी नया नया ,
सर् पर जो दुप्पटा डालना शुरू किया,
इसके सामने मुझे सब लगते फीके ताज हैं।
Full poem in caption-
लबों की बातें लबों से सुन लेती है वो
उसे कानों पर एतबार नहीं-
वो उसे प्रेम का प्रतीक मानते रहे।
दीवारों के कान तो थे पर जुबाँ नहीं।-
जमाल-ए-यार का बस इतना सा ये बयान है
आरिज़ हैं दो ग़ुलाबी और पासबाँ दो कान हैं
- साकेत गर्ग 'सागा'-
कह तो दें हम उनके कान में राज़ की बातें सभी
पर कान के पास उनके वो गुलाबी गाल भी तो हैं
-साकेत गर्ग 'सागा'-