अगर कपड़े बोल पाते,
'तुझे' बेनक़ाब कर जाते।
तेरी वो मानसिकता..तेरी घटिया सोच,
सबकी परतें ख़ोल जाते।
तेरी हर एक ओछी हरकत बताते,
तेरी गन्दी नज़रों को देख..
अपनी नज़रों से ही रोते जाते।
शुक्र मना ऐ ज़ालिम,
की कपडे बोल नहीं पाते।
वरना तुझ जैसे भेड़िये,
इस समाज में टिक नहीं पाते।
- साकेत गर्ग
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नजरों का फरक है जनाब.
कपडों से क्या तोलते हो??
जब जिस्म नोचते वक्त नही सोचा...
लिबास ओढ़ाते वक्त क्या सोचते हो??
जब बेबस कोई सड़क पर हो पड़ा...
आँखे निची क्या करते हो??
जब इंसानियत को ही मार ड़ाला...
-डॉल
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तुम्हें मेरे "कपड़े" छोटे लगते है ....
और मुझे तुम्हारी "सोच"..!!
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करता तो हूँ तुमसे प्यार,
पर जतलाऊं कैसे?
बस कुछ खुल्ले पैसे हैं,
तुम्हे बाहर मिलने बुलाऊँ कैसे,
महँगी चॉक्लेट..
महँगे गुलाब दिलाऊँ कैसे,
रूठे रहने का बहाना करता हूँ,
तुमसे मिलके अपने सादे कपडे
दिखलाऊँ कैसे,
चाहता हूँ तुमसे ढेर सारी बातें करना,
पर करने नहीं देते मेरे हालात
इन हालात को समझाऊँ कैसे,
सर पर है ज़िम्मेदारियाँ कईं,
इन ज़िम्मेदारियों को
एक अपने प्यार के कारण
झुटलाऊँ कैसे....
करता तो हूँ तुमसे प्यार,
पर जतलाऊं कैसे?
- साकेत गर्ग-
He:- शर्म आनी चाहिए तुम्हे जो इस तरह के कपडे पहनती हो......!
She:-शर्म तुम्हे आनी चाहिए जो तुम मुझे मेरे कपड़ो से देखते हो.....!-
इस बेवफ़ाई के दौर में,
मैं पाग़ल वफ़ा की तलाश में निकल पड़ा,
मुझे इल्म तो था,
लोग यहा कपड़ो की तरहा इश्क़ बदलते हैं,
पुराना हो जाए तो फ़ेक देते हैं...!!-
गलत इरादे वालों कि, सोच होती है छोटी
फिर कपडे छोटे पहने,बेटी बड़ी या छोटी
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