टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ
गीत नया गाता हूँ-
अपना सूरज खुद बनना है,
उम्मीदों को लिए संग लड़ना है,
जीतना भी है सिर ऊंचा कर
हार जाएं तो भी हंसना है
चलती रहती है लड़ाई अंधेरा और
सूरज के बीच, न देकर ध्यान इन
बातों पर, अपना सूरज खुद बनना है
तमस को दूर फेंकना है....
(आगे अनुशीर्षक में)-
ऐ दिल तूने
सुना कब है?
उसके सिवाय सपना
कोई बुना कब है?
रात को सवेरा
शोक को स्याही
करता रहा है तू;
सूरज ने अंधेरों को
चुना कब है?-
बस एक उम्मीद ही थी, जिसने हर रुख मोड़ दिया था,
वरना लगभग हर एक ने बुरे दौर में साथ छोड़ दिया था ।-
अपने खोए हमने, पर हम कहीं रुके नहीं!
गैरों का क्या डर? उनके तानों से हम कभी झुके नहीं!-
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
आनंदगीत गाणे म्हणजे जगणे असते
असे उदासवाणे ते काय जगणे असते ?
मूळ उर्दू शेर: इमाम बख़्श नासिख़
मराठी अनुवाद: प्रमोद (पीडी) देशपांडे-
पाहिले जरी तुजला नाही
तरी जीव तुझ्याचसाठी व्याकुळतो
तू भेटशील कधीतरी या
आशेवर मी मलाच समजावतो
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Rishte naye ho to
log baat krne ke
bahaane dundhte
hain,
Or rishte purane ho
to log dur jaane ke
bahaane dundhte
hain.....
Kitni ajeeb dastan h
na yaaron....-
अंधेरा घना है, छट जायेगा एक दिन
सुरज उगेगा आयेगा, सवेरा एक दिन
उम्मीद का दामन, यार तुम ना छोडो
वक्त हसीं वो, लौट आयेगा एक दिन-