Yogesh Kumar Salvi   (योगेश कुमार सालवी)
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Joined 22 March 2020


Joined 22 March 2020
3 HOURS AGO

ये कर्म, ये जज्बात, ये बर्ताव,
ये तौर तरीके, ये रिवाज,
इस कायनात में घूम फिर कर,
लौटेंगे तो हम तक ही ।

ये जो आज एक दूजे को नीचा दिखाया जा रहा हैं,
जज्बातों से खिलवाड़ कर, रुलाया जा रहा हैं,
रिश्तों को कर के शर्मसार, सम्मान को करके तार तार,
मर्यादाओं को बेहूदगी से दफनाया जा रहा हैं ।

तुम्हें क्या लगता हैं कि,
बच जाओगे इन सबसे ?
जिसे आज ये खत्म कर चुका हैं,
शुरुआत, तुमसे करेगा, कल से ।

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YESTERDAY AT 14:43

जब भी, इस जमाने से लड़ कर,
जिन लोगों का साथ निभाया हैं,
इतिहास गवाह हैं, अधिकतर ने,
बहुत ही बुरा रुलाया हैं ।

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YESTERDAY AT 9:33

कहने वाले का कभी कुछ नहीं बिगड़ता हैं,
जो करने वाला होता हैं, वो ही सब भुगतता हैं।

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23 APR AT 23:58

शायद नहीं कह पाऊंगा बात कि तुम समझो,
तुम समझो कि शायद बात नहीं कह पाऊंगा ।

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11 APR AT 9:51

वहां एक तरफ बेतहाशा दरकार हैं रोटियों की,
यहां एक पूरी दुनियां बस पैसा डकार बैठी हैं ।

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29 MAR AT 9:31

कुछ हद तक,
एक नई काबिलियत,
अनुभव की हैं खुद में,
कि पढ़ने लगा हूं तस्वीरों को,
उनमें दिखते चेहरों को,
कुछ सच्चे एहसासों को,
कुछ झूठी मुस्कानों को,
अपनों को, अनजानों को,
मंसूबों को, नजरानों को,
अब किसी तस्वीर को देखूं तो लगता हैं,
कि जैसे कोई किताब पढ़ रहा हूं मैं ।

अब जहां इस जहां में किताबें लुप्त होती जा रही हैं,
एक सजीव पुस्तकालय सा तैयार हो रहा हैं भीतर ।

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26 MAR AT 22:01

चलो, देखते हैं, अगर वहां पैसे की बात न हो,
तो फिर, शायद अपनी कोई बात होगी,
और दिखेगा कि अपनी ज्यादा बात न हुई,
क्योंकि आखिरकार वहां पैसे की बात ही होगी ।

इन सब से परे,
तुम्हारे और तथाकथित ईश्वर की बात भी कर लेंगे,
जो पैसों के लेन देन के बिना,
एक दूसरे का जिक्र तक नहीं करते,
एक दूसरे की फिक्र तक नहीं करते,
वहां बचना होगा बात करने से,
वरना बहुत सारे लोग बहुत सारी बात करते मिलेंगे,
कुछ लोग हैं जो तर्क लिए कुछ बात सही करते हैं,
कुछ लोग हैं जो ये बात करने से कभी नहीं डरते हैं ।

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20 MAR AT 21:57

जिंदगी के इस दौर में,
सब कुछ जुदा सा हैं,
होंठों से गायब हैं मुस्कुराहट,
चेहरे से रंग भी उड़ा सा हैं,
बस दूर से दिखाई देता हैं बढ़िया,
कितना बुरा हैं वो, जो जीना पड़ता हैं,
कितने ही जख्म ऐसे हैं, जो फिर लौट आते हैं,
सबसे छुपा कर, जिन्हें खुद ही सीना पड़ता हैं,
मालूम होते हुए भी, कि फिर मरना पड़ेगा भीतर,
कितना ही जहर हैं यहां, जो हर वक्त पीना पड़ता हैं,
यूं तो सब दिखाई पड़ता हैं, पर कुछ पता नहीं चलता हैं,
दिलासा मिल जाए कोई, तो सुकून उस से सीधा लड़ता हैं,
ऐसे जब गुजरते हैं इन सब पलों से, जब खुद पर बन आती है,
तब जाकर ही पता चलता हैं कि सचमुच क्या क्या जीना पड़ता हैं।

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15 JAN AT 20:32

जब आप चाहते हैं,
उन लोगों को अपनी खुशियों में शामिल करना,
जो आप के साथ थे,
जब आपका समय खराब था,
जब आप संघर्षरत थे,
जब आप अकेले थे,
तब बहुत विचार करने पर,
आप पाते हैं कि,
अभी भी आप अकेले ही हैं,
क्योंकि शुरू में, मध्य में, अन्त में,
आपको ऐसा कोई भी नहीं मिलता,
मिलते हैं तो बस सबक,
और समय बीत जाने पर,
कुछ मिल जाने पर भी,
बहुत कुछ नहीं बदलता,
और बीते हुए समय की,
कभी भरपाई नहीं होती,
तब आप चाहते थे जो भी,
अब आप चाहते हैं वो भी ।

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2 JAN AT 21:53

कभी कभी, मैं घूम आता हूं, उन यादों के शहर में,
जहां तेरा बसेरा था, मेरी नजर में,
जुबां पर एक नाम था,
काफी कुछ कमाल था,
हसरतें हजारों थी, हरकतें हजारों थी,
और तू बेमिसाल, हम-ख़याल था ।

मैं ठहराव महसूस करता हूं,
उस समय के भंवर में फंसा हुआ,
बार बार वही लौट आता हूं,
पता नहीं ये कैसा नशा हुआ,
मैं तुम्हारे इर्द गिर्द घूमता रहता हूं,
हर बार अलग दिशा से सोचता हुआ,
हर बार अलग दशा को सोचता हुआ,
मैं कितनी ही मर्तबा लौटता हूं, तुम्हें पाने को,
हर दफा, वो पल सारे, संग फिर से बिताने को ।

मैं ठहरा हुआ ही हूं, इस जमाने में,
जीवन बिताने को, थोड़ा कमाने में,
लोग कहते हैं अक्सर, कि आगे बढ़ो,
क्यों थम जाते हो, यादों के बहाने में,
मैं भी सोचता हूं कभी, आगे जाना कहां हैं ?
क्या मुझे वही लौटना हैं आखिर, तू जहां हैं ?

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