Yogesh Kumar Salvi   (योगेश कुमार सालवी)
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Joined 22 March 2020


Joined 22 March 2020
16 JUN AT 22:22

फिर मौका मिले तो
किस तरह मुझे विदा करोगे ?
गले लगाओगे, रोओगे,
या हंस कर जुदा करोगे ।

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15 JUN AT 11:24

उस समन्दर ने, पास आने ना दिया,
था तैर पाना वहां, मेरे बस का नहीं,
वो सब जानता था, हकीकत जो भी थी,
था अनजान बस मैं, और था बस में नहीं ।

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14 JUN AT 22:42

वहाँ न जाने कितने तराजू टूटे, इस शादी के मोलभाव में,
ये पवित्र रिश्ता जुड़ नहीं पाता, इस व्यापार के अभाव में ।

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14 JUN AT 19:59

सज-धज के आए तुम, बहुत खूबसूरत दिखे,
हमने हसीन कह दिया तुम्हें, तुम नाराज यूं हुए,
तारीफ नहीं पसन्द तुम्हें, ये मालूम नहीं था,
वरना तुमको चुपचाप बस यूं देखते रहते ।

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14 JUN AT 9:15

इस छोटी सी जिन्दगी में अब तक,
ना जाने कितने ही साल गुजारे,
दो पल बात करने की खातिर,
जन्मदिन के इंतजार में तुम्हारे ।

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13 JUN AT 22:19

खूबसूरत दिखाई देने की खातिर कितना वक्त जाया होता हैं,
बेशक पैसा भी लगता हैं बेतहाशा जो कमाया होता हैं,
कोशिशों का कोई हिसाब नहीं पर तारीफ से भी बहुत कुछ पाया होता हैं,
वही एक संजीदा मुस्कुराहट की आड़ में न जाने कितना गम छुपाया होता हैं ।

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9 JUN AT 22:37

तुम बस उन जैसे काबिल लोगों को ही नसीब हो,
हम जैसों को तो पछतावे ने भी ठुकराया हुआ हैं ।

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7 JUN AT 21:22

बिना पहचान, बिना साथ, बिना बात किए,
दूर से दिखा तो सिर्फ चेहरा और ये काया,
दिखी नहीं सीरत, नजरिया भी नहीं,
और सोच विचार, तो बिल्कुल भी नहीं ।

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7 JUN AT 10:19

स्त्री, तुमने हमेशा आजाद होना चाहा,
मुक्त होना चाहा उन सारे बंधनों से,
रूढ़ियों तले पले उन सारे फ़लसफ़ों से,
मगर कैद कर बैठी, उसी पुरुष को,
जो पुरजोर सिफारिश दिन रात कर रहा था,
जो बस तुम्हारी आजादी की बात कर रहा था।
तुमने तो हटा ही दिया उसे, अपनी तस्वीरों से,
उसकी तस्वीर भी हटा दी, मिटा दिया लकीरों से,
एक उसको ही तो नहीं रहना था हमेशा यहाँ,
कि एक तुमको ही तो नहीं रहना था हमेशा यहाँ,
कुदरती साथ, थामा हाथ, आगे साथ था बढ़ते जाना,
छुड़ा लिया हाथ मगर तुमने उसको एक खतरा जाना,
अब वो नहीं हैं, हकीकत में, वो जा चुका हैं, सदा के लिए,
अब बस तुम ही हो, जैसा तुमने चाहा था, सदा के लिए ।
अब शायद तुम आजाद हो, जो चाहे वो करने के लिए,
पर कोई नहीं रहा दूजा, कुछ भी व्यक्त करने के लिए,
यही इस जगत में बची एक स्त्री, क्या करेगी पता नहीं,
कहीं दूजे जगत में बचा एक पुरुष, क्या करेगा पता नहीं।।

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11 MAY AT 10:46

जब मैंने कहा था बार बार, कि जब रूठ जाऊं मैं,
या लगे कि मुझे तकलीफ हैं, या कोई ग़म सताए मुझे,
या कुछ भी आजमाने में, ना वक्त पर याद करे,
या कुछ भी जमाने में, अपना वक्त बर्बाद करे।
अकेला रहूं, तो रहने मत देना अकेला,
मना करूं, फिर भी पूछ लेना हर दफा,
बार बार ना करने पर भी, दूर दूर सा रहने पर भी,
नाराज सा दिखने पर भी, हैरान सा दिखने पर भी,
समझाना, बताना, बार बार, फिर से,
लौटना, दोहराना, वो बात, फिर से,
कि ये वक्त नहीं लौटेगा, जो एक बार गया,
जिस गम को लिए बैठे हो, छोड़ो यार, हां,
ये वक्त नहीं लौटेगा, ये वक्त नहीं लौटेगा,
कि ये वक्त नहीं लौटेगा, जो एक बार गया ।

फिर भी, होश में आने पर, पछतावा होने पर,
मुझे खुद ही संभालना पड़ा खुद को,
पर तुमसे कहते रहने पर भी बार बार,
तुमसे ये फिर भी ना कहा गया मुझसे एक बार,
रूठे को मनाना नसीब नहीं, या जो जिद से पार हुआ,
और वो वक्त हमारा बर्बाद हुआ, दोहराव फिर एक बार हुआ,
जैसा आहत मैं भी भीतर हर बार हुआ,
वैसा आहत मैं भीतर फिर उस बार हुआ,
और फिर कहते हैं, ये रिश्ते हैं काम के यहीं,
और फिर रहते हैं ये रिश्ते काम के नहीं ।

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