Yogesh Kumar Salvi   (योगेश कुमार सालवी)
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Joined 22 March 2020


Joined 22 March 2020
15 HOURS AGO

किसी और ख्वाहिश की चाह नहीं हैं अब मुझको,
एक ही रज़ा हैं मुझे इस जहां से रुखसत होना हैं।

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17 SEP AT 22:32

अंत में जब मैंने भी चुना, भावना विहीन हो जाना,
अचानक बहुत लोग आ गए, रिश्ता खत्म करने ।
जिन्दगी का अमूल्य समय मेरा, जब बर्बाद किया गया,
जब आम जरूरतों से, भावनाओं से खिलवाड़ किया गया,
कोई तवज्जों नहीं दी गई, बस एहसान का एक नाम दिया गया,
नकार दिया गलत व्यवहार को, आज जब मैं लगा मना करने,
"अब और नहीं, बस, बहुत हुआ", लोग आ गए, मुझे तबाह करने ।

तब कोई भी नहीं था, हर ग़म मुझे ही सहना पड़ा,
काफी वक्त बीत गया, मुझे यूं अकेला ही रहना पड़ा,
हाल तक नहीं पूछा, ना बात की किसी ने,
कितना दबा था भीतर, जो इतना कुछ कहना पड़ा,
इस गंभीर मसले को वो सब हंस कर टाल देते हैं,
कहते हैं कि ये सब तो होता रहता हैं, और मुझे सुनना पड़ा,
पर मुझसे अब भी भुलाया नहीं जाता, हर वो लम्हा जो मुझे सहना पड़ा,
उस वक्त कोई भी साथ देने नहीं आया, कितना अकेला मुझे रहना पड़ा,
मैं ही जानता हूँ, कि मैंने कैसे वो वक्त बिताया,
मैं ही जानता हूँ, कि मैंने कैसे रोते हुए खुद को हंसाया,
अब चले जाओ, उम्मीद ना करो ज्यादा, अब जो ये सब हैं कहना पड़ा,
बड़ी देर हुई, भावनाओं के बाजार में वक्त जाया ना करो तुम अब,
इस खरीद फरोख्त के व्यापार में हो चुका हूँ मैं अब महंगा बड़ा ।

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14 SEP AT 9:11

इन हालातों से, अनुभवों से,
बदला हैं नजरियां तुम्हारा,
पर कुदरत वहीं हैं, जहां कल थी,
फूलों ने खिलना बन्द नहीं किया,
नदियों ने बहना बन्द नहीं किया,
ना सूरज ने उगना, ना तारों ने चमकना,
तुम्हारी उदासी ने बस तुम्हें रोका,
दुनिया वही चल रही हैं,
तुम्हारे बिना भी,
अगर कोई दुनिया हैं,
जिसे फर्क पड़ता हैं,
तुम्हारे होने, ना होने से,
तो फिर, वहीं ध्यान दो, ध्यान से,
जो बर्बाद हो जाए, तुम्हें खोने से,
जो आबाद रहे, तुम्हारे होने से,
ये ऊर्जा सीमित हैं, जीवन भी, समय भी,
इसमें अर्थ भरो, ना इसे व्यर्थ करों ।

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14 SEP AT 8:41

शायद हमें समझ नहीं इतनी,
पर अजीब सा महसूस करा रहे हैं,
विश्व पटल पर जो आप,
ये हैरतअंगेज कारनामे किए जा रहें हैं,
लाल आँखें दिखाने की जगह,
हाथ मिला रहे हैं,
देश पर हमला करने वालों से,
क्रिकेट मैच खेला रहे हैं।

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14 SEP AT 8:27

बारिश जो रुकी जरा सी,
धूल का गुबार सा दिखाई देता हैं,
ये छोटा सा नगर, हर तरफ से,
अब दिल्ली सा दिखाई देता हैं।

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10 SEP AT 23:37

जिस तरह वो सब नसीब हैं,
हर बुरे जन को, या धन को,
तुम्हारी ये भलमनसत, फिर किस काम की?
अच्छा बन, मिली ताउम्र जिल्लत, किस काम की?

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10 SEP AT 23:25

उसका ना होना,
उसके होने का भ्रम होना ।

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10 SEP AT 20:29

जिन्दगी तो तुम्हारी हैं,
पर, वो नहीं ।

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9 SEP AT 22:37

जिन रास्तों से तय किया था वो सफर,
मंजिलें पूछती हैं आज भी निशां उनका ।

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29 AUG AT 20:12

तुम्हें मालूम हैं, या नहीं,
मगर, तुमने गलती से,
कितना कुछ यहां,
गलत कर दिया हैं,
तुम्हारी हरकतों ने,
तुम्हारे बर्ताव ने,
अच्छे लोगों को,
खत्म सा कर दिया हैं।

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