पार्थसारथी
(अनुशीर्षक में पढ़िए)-
जीवन की महाभारत में
एक के बाद एक लक्ष्य साधते हुए
अर्जुन समझ रही थी मैं खुद को....
सोचा बस
अब तो....
श्री कृष्ण से
ज्ञान पाना बाकी है
एकाएक मालूम पड़ा
निहत्था अभिमन्यु हूं
मैं तो
..
..
और अभी तो मेरा...
'चक्रव्यूह' में फंसना बाकी है !!!
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भक्त वहीं,
जो अपने भगवान से भी प्रश्न पूछे!
अगर श्रीकृष्ण को,
अर्जुन जैसा भक्त ना मिलता!
तो हम संसार वालों को,
श्रीमद्भगवद्गीता ना मिलता!
और
आज का भक्ति कुछ ऐसा है कि,
हम भक्ति कम,
अंधभक्ति ज्यादा करते हैं!-
महाभारत युद्ध के तीन बहुत महत्वपूर्ण नियम थे।
1. एक वीर से एक वीर ही लड़ेगा।
2. निहत्थे पर कोई वार नहीं करेगा।
3. युद्ध समान बल के व्यक्तियों में होगा, मतलब अतिरथी अतिरथी से, महारथी महारथी से, पैदल पैदल से ही युद्ध करेगा।
अभिमन्यु जब चक्रव्यूह भेदकर बीच में पहुँच गए थे तब उनको सारे अतिरथी, महारथियों ने घेर लिया, वे अकेले पूरे झुंड से जूझ रहे थे और वे जब निढाल और निशस्त्र हो गए तब सबने मिलकर उनका वध किया था। अर्थात एक बार में ही कौरवों ने युद्ध के सारे नियम तोड़ दिए थे।
उसके बाद पांडवों ने एक एक करके युद्ध के सारे नियम तोड़े, और जब जब कौरवों ने नियमों की दुहाई दी उन्होंने अभिमन्यु वध का उदाहरण देकर कौरवों का मुँह बंद किया।-
आन बान शान भूल चुकी त्याग चुकी हूं मोह माया राज रजवाड़े रास ना आए माधव जब से नाम सुहाया♥️
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आग्नेयास्त्र चला बैठा मैं कलियुग का अर्जुन हूं
घर को आग लगा बैठा मैं कबीर, नागार्जुन हूं।।-
मोह माया से बंधा हुआ
अपने भय के आकाश में है वो।
अर्जुन है वो भटका सा
अपने माधव के तलाश में है वो।
उलझन के अंधेरे में घिरा हुआ
रात के फीके प्रकाश में है वो।
पार्थ है वो विचलित सा
अपने कृष्ण के तलाश में है वो।-
दुसरो को आइना दिखाना
स्वयं के पैर में स्वयं से
कुल्हाड़ी मारने का बेहतर तरीका है...-