सवाल -
क्यों प्यार नहीं होता तुमको ,
क्यों बातें करने के से कतराती हो
पढ़ते तो आखिर हम भी हैं ,
तुम इतने भाव क्यों खाती हो ?
जवाब -
(अनुशीर्षक में जारी)-
कलम अंतर्मुखी व्यक्ति की
सबसे अच्छी मित्र होती है।
Pen is the bestest friend of
an introvert person.-
शायद ये मन अंतर्मुखी है
मानों एक मौन ज्वालामुखी है,
कई तुफां दफ़्न हैं सीने में
कई सैलाब उमड़ते रहते हैं
उतर आने को आँखों में,
लेकिन मन के मौन विराने में
सिर्फ बेबसी की सिसकन है,
एक पिंजड़े के पंछी सा
हर पल मानों एक तड़पन है,
ना जाने इस अंतस की
हर लम्हा कैसी घुटन है ये !
जाने कैसा अंतर्मुखी मन है ये !-
उम्र कम है मगर तजुर्बा रखती हूं,
हर खुली किताब के अनकहे ‘एहसास’ मैं खूब समझती हूं,
शब्द कम हैं मगर विचारों के सागर में डूबी रहती हूं,
हर कोरे कागज़ की अनसुनी ‘तड़प’ मैं खूब महसूस करती हूं,
सतरंगी मन है मगर रंगों में भेदभाव नही करती हूं ,
अंधेरे में भी रंगों के ‘अवशेष’ मैं देख सकती हूं
दोस्त कम हैं मगर दोस्ती बखूबी निभाती हूं,
अविश्वास की आवाज़ में दबी आशा की ‘पुकार’ मैं साफ सुन सकती हूं
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@कहानी "introvert" _ अंतर्मुखी की
मैंने पूरे चार साल के कॉलेज डेयस मे, बस एक दोस्त बना रखे थे. अक्सर इंजीनियरिंग कॉलेज मे दोस्ती की कमी होती नहीं, फिर भी मेरा सुकूं एकांत ही था. शायद ये बचपन से है. मसलसल भीड़ मुझे रास नहीं आते. ऐसा नहीं है, मुझे लोगों से कोई मसला है, बस मैं चुप हो जाना पसंद करती हूँ. अक्सर मेरे मुह बहोत बेबाक है, पर कुछ लोगों के साथ . ये आजकल अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी का जोर चला है. शायद अन्तर्मुखी ही हूँ. किताबे पढ़ना, प्राकृतिक चीजों का विश्लेषण करना, देर तक बेवजह ताकना, चुप्पियों मे खोए रहना, ये आम है. बहोत है ऐसे लोग, जिसे बेवजह शांत रहना पसंद है. दुनिया की भीड़ मे दौड़ना नहीं चाहते, खुद को दुनिया से अलग रखना चाहते हैं. इसमे कोई आत्मविश्वास की कमीपन नहीं हैं, देखा जाए अकेले लोग ही आत्मविश्वास से भरे होते हैं. इसीलिए लाखो की भीड़ मे तन्हा, और अकेलेपन में सुकूं नजर आता है.-
गुजरते वक़्त के साथ,
कॉकटेल - पार्टियों में,
महानगरों के पार्क में,
बाहों में बाहें डाले घूमते,
जोड़ों को देख कर,
रस घोलती सरगोशियों में,
तुम्हारे मधुर सामीप्य
की चाह, बरबस ही
तीव्रतम हो जाती है!
लेकिन..
अपने सीने में क़ैद,
अपनी "अनोखी चुप्पी"
और तुम्हारी उस
"आश्चर्यजनक कायरता" के
साथ- साथ रीते मन,
बेजान रूह और छीजते
समय की दहलीज पर,
एक निहायत ही मिथ्या,
दमघोंटू परिवेश में
अन्ततः रह जाता है -
मेरे अंतर्मुखी मन के साथ,
मेरा वज़ूद..परफ्यूम की
टूटी शीशी की तरह..!!
© #Veenu" ✍-
मेरे जैसे किसी अंतर्मुखी व्यक्ति के लिए
भावनाओं का उसी रूप में व्यक्त किया जाना,
जिस रूप में महसूस किया जाए,
बेहद मुश्किल है।
क्योंकि तरीका कोई भी हो, व्यक्त करना ज़रूरी है,
मेरा सौभाग्य है, जो मैं बोल नही पाती, उसे मैं लिख पाती हूं।
मेरी कलम, मेरी ज़ुबान हैं,
इसलिए लिखना मात्र मेरा शौक नही,
अपितु मेरे लिए वरदान है।-
सुन सखी
मैं अंतर्मुखी ,
कह ना सकी ,
बात कोई !
नवल धवल
सब श्याम किये ,
बदरा बरसे
रात रोई !
तू ही बोल
है क्या जग में ,
कलम सा दूजा ,
साथ कोई ?
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