कैसी हैं ये तन्हाइयां मुझे उसका पता मालूम नहीं.,
मेरे जज़्बातों से यूँ खेल के क्या उसको मिला मालूम नहीं,
अब ये शामें तन्हा गुज़रती हैं,आँखे दिन रात बरसती हैं,
जिधर भी देखूं वहां मुझे बस उसकी सूरत दिखती है.,
मेरी हर धड़कन में वो है बसा जिसको मुझसे उंस ही नहीं,
जो मैंने कहा वो सबने सुना,क्या उसने सुना मालूम नहीं,
कुछ नाम मिले इस उल्फ़त को तो दिल को भी आराम मिले,
इसे इश्क़ कहें या पागलपन, ये कैसा नशा मालूम नहीं..
उल्फ़त में मिले थे दो दिल जो कभी,मंज़िल से पहले बिछड़ गए,
ना कोई ख़बर क्या जुर्म हुआ, क्या होगी सज़ा मालूम नहीं ।।
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