QUOTES ON #हिन्दी_काव्य_कोश

#हिन्दी_काव्य_कोश quotes

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23 JUN 2020 AT 9:38

घर मे हर खोयी चीज को
खोजने
की अपेक्षा घर की औरत
से की जाती है,

अक्सर इन्हीं छोटी चीजों
को संभालते संभालते
वो गिरा देती है
खुद की बहुत सी आकांक्षाएं

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12 JAN 2021 AT 23:09

हर कैद से आजाद होने का ,चलो आज आगाज करते हैं!
बर्बाद करना चाहे जो हमें,
अब्तर उन्हीं के ख़्वाब करते हैं।
नयी सोच के महल की ,
चलो आज असास रखते हैं
हैवानों की बस्तियों को ,
चलो आग आग करते हैं।
जो बीत गया कल गमों से भरा,
उन्हें भी जलाकर खाक करते हैं।
हर कैद से आजाद होने का ,चलो आज आगाज करते हैं...
जो पंख काटना चाहे हमारे,
उनका आज बहिष्कार करते हैं
ऐतबार हो जिन्हें हमारे सामर्थ्य पर,
उन्हें न कभी निराश करते है
खुद की चाहतों का चलो,
नया आज आकार करते हैं
देखे जो खुली आंखों से,
स्वप्न वो सभी साकार करते हैं!
हर कैद से आजाद होने का,
चलो आज आगाज करते हैं...
जमीं पर ही उड़ेंगे आज से,
गगन के परिंदों पर एहसान करते हैं
क़मर भी छूना चाहे, आफताब भी जल उठे
इस हद तक अपना नाम करते हैं
दौड़ेंगे सदैव प्रगति पथ पर,
स्वयं से आज इकरार करते है!
हर कैद से आजाद होने का,
चलो आज आगाज करते हैं!!

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13 OCT 2020 AT 16:12

हो मनुज अगर,पहले मनुष्य बन दिखाओ तो सही

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17 SEP 2020 AT 10:01

एक दिन, खाली पेट हम भी बागी, क्रांतिकारी हो गए
फिर पेट भर गया और हम हसीन सपनों में खो गए।

कमाना चाहते थे बहुत, कुछ बदलना चाहते थे
हुकूमत ने मुफ़्त रोटी दे दी तोह गुज़र-बसर करने लगे।

बदलाव तोह चाहते थे, देश में अच्छी सरकार चाहते थे
मुफ़्त में दारू मिली तोह हम बहकावे में आ गए।

हम तख्त पलटना जानते थे, वोट की कीमत जानते थे
किसी ने क्या कीमत लगाई ,साड़ी और पौओं में बिक गए।

वो लूटते रहे हम लुटाते रहे, हमें सोने की चिड़िया बताते रहे
घर के बरतन तक बिक गए और हम तमाशा देखते रहे।

वो लुटेरा वाकपटुता जानता था , हम सम्मोहित हो गए
मोह टूटा आंख खुली तोह पता चला पांच साल हो गए।

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5 JUN 2020 AT 21:01

कविता एक कहानी कहती है...

कविता में कहानी रहती है...

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13 APR 2020 AT 21:57

निज स्वार्थ सिद्धि की लिए कामना,
जो जंगल पर जंगल काटे हैं,
तू समझ ना पाया इनके मूल्य को,
जों कट कर भी खुशियाँ बांटे हैं।
नीर नही बरसेगा फिर, केवल अग्नि वर्षण होगा,
अंतहीन इस 'भूख' 'प्यास' का कैसे फिर तर्पण होगा?
लहराती, इठलाती हरियाली का, फिर सौन्दर्य कहाँ से लायेगा,
तपती धूप में कैसे फिर तू ममता सी छाँव पायेगा?
मत भूल कि यें सांसें भी तेरी, उनका तुझ पर उधार है,
ये तेरा अस्तित्व सकल 'वृक्षों का उपकार' हैl

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23 APR 2020 AT 19:07

पड़ा बैठना किवाड़ फेर कर, जब सबको घर के अंदर।
इस विपदा को पार लगाने, तब उतर गए तुम बीच 'समन्दर'।।

'रात' को 'दिन' में बदल दिया, जान लगाकर दांव पर।
डटे हुए हो मैदान में तुम, भूख प्यास को त्याग कर।।

हारे-थके विचलित तन-मन में, जीवन की खुशी छलकाई है।
कर्तव्यनिष्ठा से ही तुम्हारी, उम्मीद आखिरी आई है।।

न मानो भगवान भी तो तुम ईश्वर का साया हो।
जोर पकड़ते रोग के तप में ठंडी, नर्म छाया हो।।

अभयदान तुम्हारा बहुमूल्य है, योगदान तुम्हारा अतुल्य है।
नमन तुम्हारे चरणों में, बलिदान तुम्हारा अमूल्य है।।

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10 JUL 2021 AT 20:24

लंबी बातों से मुझे कोई मतलब नहीं है,
मुझे तो उनका - " का हो "
कहना ही अच्छा लगता है

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7 NOV 2020 AT 9:06

राहों में आगे बढ़ते हुए
कितने दूर निकल जाते है.
ना जाने लोग कहां चले जाते है।

आंख मिचौली खेल-खेल में
आंखों से ओझल हो जाते है.
ना जाने लोग कहां गुम जाते है।

सारे सपनों को समेटकर
चिरनिद्रा में सो जाते है.
ना जाने लोग कहां खो जाते है।

मिट्टी में पलकर बढ़कर
मिट्टी में ही मिल जाते है.
ना जाने लोग कहां गुम जाते है।

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12 APR 2020 AT 15:27

❣️❣️❣️

एहसासों के इंद्रधनुषी रंग को, स्पृहा की झूमती उमंग को
बिन शब्दों की अभिव्यक्ति को, हर बंधन से मुक्ति को

नयनों की आस से प्रीत को, मस्तिष्क पर हृदय की जीत को
श्वासों से श्वासों के संगम को, धड़कनों की सुरमयी सरगम को

तन-मन के वसंत श्रृंगार को, स्नेह की भीनी फुहार को
प्रतिक्षण स्मृति के संग को, स्पर्श की मदमस्त तरंग को

सानिध्य को व्यकुलित चाहत को, प्रियतम के आलिंगन की गर्माहट को
हृदय के अनंत अनुराग को, विछोह से विचलित विराग को

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