स्त्री के मन को समझना उतना ही मुश्किल है जितना पुरुष के प्रेम की गहराई को समझ पाना..
जब तक स्त्री अपना मन और पुरूष हाथ, "थामे" रखते हैं उन दोनों से ज़्यादा भावुक और समर्पित कोई नहीं होता....
लेकिन जिस दिन मजबूत होकर स्त्री अपना मन आज़ाद और पुरुष प्रेम करना, "छोड़ते" है, दुनिया की कोई भी ताकत दोनों को ही, वापिस बंधन में नहीं बांध सकती...!
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