कोई भी काम करो पेंसिल की तरह , गलतियो को मिटाओ , लिखो मिटाओ , लिखो मिटाओ और अंततः लिख दो , पेन जैसी फ़ितरत रखोगे तो एक छोटी सी गलती के लिए उस पन्ने को फाड़ दिया जायेगा जो मंजिल की कोई सीढ़ी बनेगी , और शुरुआत फिर से करनी पड़ेगी ।
आज इस सवाल का मैंने काफी विश्लेषण किया! तरह तरह के जवाब मेरे दिमाग में आये! लेकिन संतुष्टि नहीं मिली। क्योंकि मैं एकदम सीधा जवाब ढूंढ रहा था।😌 आखिरकार मेरे दिमाग ने एक बहुत ही खूबसूरत जवाब दे ही दिया! कि दरअसल दिल में एक 'सीढ़ी' लगी होती है जिससे होते हुए लोग उतर जाते हैं।😌😌
माना कि हमे आता नही लिखना फिर भी लिखने का जतन करते हैं चलाते हैं हाथ कि उंगलियां हाथ पर हाथ नही धरते है कभी तो चढ़ेंगे मंज़िल की सीढ़ियां अभी तो पाँव मिरे फ़िसलते है गिरते हैं फिर उठकर संभलते है अपने इरादे को नही बदलते हैं पा लेंगे एक दिन मंज़िल अपनी आखिरी सीढ़ी चढ़ने से ज़रा डरते हैं ख़ुद उतरते चढ़ते है मंज़िल की सीढ़ियां राह में जो लुत्फ़ है उसी पर मरते हैं कभी पाँव जमाते है चढ़ती सीढ़ियों पर तो कभी बिना रुके ही आगे बढ़ते हैं सच पूछो तो मंज़िल पाने की चाह नही इसलिए रास्तों पर ही ख़ुद भटकते हैं