यह चाँद उदित होकर नभ में
कुछ ताप मिटाता जीवन का
लहरा लहरा यह शाखाएँ
कुछ शोक भुला देती मन का
कल मुर्झानेवाली कलियाँ
हँसकर कहती हैं मगन रहो
बुलबुल तरु की फुनगी पर से
संदेश सुनाती यौवन का
तुम देकर मदिरा के प्याले
मेरा मन बहला देती हो
उस पार मुझे बहलाने का
उपचार न जाने क्या होगा
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो
उस पार न जाने क्या होगा
(हरिवंश राय बच्चन की कविता "इस पर, उस पार" से)-
फूलों की तरह लब खोल कभी
ख़ुशबू की ज़ुबाँ मे बोल कभी
अलफ़ाज़ परखता रहता है
आवाज़ हमारी तोल कभी
अनमोल नहीं लेकिन फिर भी
पूछो तो मुफ़्त का मोल कभी
खिड़की में कटी है सब रातें
कुछ चौरस और कुछ गोल कभी
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
हो जाता है डाँवांडोल कभी
By - ✍गुलज़ार✍ -
#साभार:कविता कोश
#जन्मदिनमुबारक
【प्रस्तुति: #Veenu"】-
बुरे को बुरा कह न पाना जिनका दिखता स्पष्ट है
शिकायत न करें जिनका चित्त अधीन मति भ्रष्ट है
-
"अनुभूति"
✍✍✍✍
तुम आती हो,
नव अंगों का
शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो।
बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम,
सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,
तुम आती हो,
अंतस्थल में
शोभा ज्वाला लिपटाती हो।
अपलक रह जाते मनोनयन
कह पाते मर्म-कथा न वचन,
तुम आती हो,
तंद्रिल मन में
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।
अभिमान अश्रु बनता झर-झर,
अवसाद मुखर रस का निर्झर,
तुम आती हो,
आनंद-शिखर
प्राणों में ज्वार उठाती हो।
स्वर्णिम प्रकाश में गलता तम,
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम
तुम आती हो,
जीवन-पथ पर
सौंदर्य-रहस बरसाती हो।
जगता छाया-वन में मर्मर,
कंप उठती रुध्द स्पृहा थर-थर,
तुम आती हो,
उर तंत्री में
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।
✍✍सुमित्रानंदन पंत✍✍
【प्रस्तुति #Veenu"】 #साभार : कविताकोश-
दोहा लेखन : दोहे के माध्यम से:
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मन में जब तक आपके, होगा शब्द-अभाव।
दोहे में तब तक नहीं, होंगे पुलकित भाव।१।
गति-यति, सुर-लय-ताल सब, हैं दोहे के अंग
कविता रचने के लिए, इनको रखना संग।२।
दोहा वाचन में अगर, आता हो व्यवधान।
कम-ज्यादा है मात्रा, गिन लेना श्रीमान।३।
लघु में लगता है समय, एक-गुना श्रीमान।
अगर दो-गुना लग रहा, गुरू उसे लो जान।४।
दोहे में तो गणों का, होता बहुत महत्व।
गण ही तो इस छन्द के, हैं आवश्यक तत्व।५।
तेरह ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
विषम चरण के अन्त में, होता जगण निषिद्ध।६।
कठिन नहीं है दोस्तों, दोहे का विन्यास।
इसको रचने के लिए, करो सतत् अभ्यास।७।
By: ✍डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'✍
#साभार: uchcharan.blogspot.com
【प्रस्तुति: #Veenu"】-
शिवाला है या मकबरा शान ए हिंदुस्तान है ,
बेजुबां पत्थर है वो ,न हिन्दू न मुसलमान है।।-
*मैथिलीशरण गुप्त की सुन्दर रचना*
तप्त हृदय को,सरस स्नेह से ,
जो सहला दे , *मित्र वही है।*
रूखे मन को , सराबोर कर,
जो नहला दे , *मित्र वही है।*
प्रिय वियोग ,संतप्त चित्त को ,
जो बहला दे , *मित्र वही है।*
अश्रु बूँद की , एक झलक से ,
जो दहला दे , *मित्र वही है।*
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🙏मित्रता दिवस की शुभकामनाएं🙏
【प्रस्तुति #Veenu"
#साभार: कविता कोश】-
काका हाथरसी के "हास्य-दोहे":
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अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज।
अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट।
अंदर काला हृदय है, ऊपर गोरा मुक्ख,
ऐसे लोगों को मिले, परनिंदा में सुक्ख।
अक्लमंद से कह रहे, मिस्टर मूर्खानंद,
देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंद।
अंधा प्रेमी अक्ल से, काम नहीं कुछ लेय,
प्रेम-नशे में गधी भी, परी दिखाई देय।
अगर फूल के साथ में, लगे न होते शूल,
बिना बात ही छेड़ते, उनको नामाक़ूल।
अगर चुनावी वायदे, पूर्ण करे सरकार,
इंतज़ार के मजे सब, हो जाएं बेकार।
मेरी भाव बाधा हरो, पूज्य बिहारीलाल,
दोहा बनकर सामने, दर्शन दो तत्काल।
- ✍काका हाथरसी✍
【प्रस्तुति: #Veenu" 】-
... और अब चलते चलते "ग़ालिब" के हवाले से
बस कि दुश्वार है हर काम का आसान होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिसके क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना-
... और अब चलते चलते "ग़ालिब" के हवाले से
तारों में चमक, फूलों में रंगत न रहेगी
कुछ भी न रहेगा जो मोहब्बत न रहेगी-