कोई थाम ले तो उसी का हो जाऊं
अब न बांध सकेगा मुझे कोई पाश
ज़माने सुन ले, इल्ज़ाम न देना अगर
फ़रार हो जाऊं या हो जाऊं अय्याश
या रब ढूंढने लग जाऊं मंदिर मस्जिद
मिल जाए तो मांग लूं इंतिहा काश
या जी लूं जी भर के मदहोश होकर
बहक जाऊं देख के जिस्मों की तराश
कोई हाथ कोई वो कांधा नहीं चाहिए
मेरे तजुर्बों ने बताया बेकार है तलाश
मैने मांगा दो कदम का साथ मेरे साथ
उन्हें चाहिए था पंछियों भरा आकाश
अब मैं कुछ भी हो जाऊं मुमकिन है
पर दिल पे न होने दूंगा कोई ख़राश
अब दिल नहीं करता लौट जाऊं वहां
जहां से एक भी बार हुआ मैं निराश-
I started playing with words when I entered i... read more
मुझे अलहदगी में ज़ख्मी छोड़ने वाले
मेरे ख़ैर-अंदेशों को शुक्रिया कहो कोई
मैने अलहदगी में जीना सीख लिया है
मेरे ख़ैर-अंदेशों को शुक्रिया कहो कोई
कभी खलिश का खंजर चुभे अगर
दर्द बूंद बूंद दिल से रिसने लगे अगर
अंजाम का डर मगर अब है बेअसर
मेरे ख़ैर-अंदेशों को शुक्रिया कहो कोई-
वो जितना जी सकता था उसने जी लिया
मौत तो चलकर आएगी वो सफ़र क्या करे
जिन ख्यालों से भागते भागते दिन गुजरे
वो ख्वाबों में उतर आए तो बशर क्या करे
कुछ पाने के एहसास से खुशी नहीं होती
उसे जहां भी मिल जाए तो कदर क्या करे
कसक उसकी उठी जो उसका था ही नहीं
उसको खोकर दिल रोए तो बशर क्या करे-
तेरा दिल दुखाया वो हर बात भुला दे
मेरे रंज ने जगाया वो हर रात भुला दे
मैने जो लिए उन वादों को ना भूलना
भले ही तेरे लिए मेरे जज़्बात भुला दे
तेरी घड़ी की सुइयों में रख ले वो वादे
मैं ना भी रहूं तू याद रखना मेरे इरादे
तुझसे जो तेरे लिए मांगे तू जी वो लम्हे
दिल से डर की सारी तू दीवारें गिरा दे
अपने लिए भी थोड़े गीत गुनगुना दे
इस जहां को तू अपने फैसले सुना दे
राहें तुझे कहीं मुझे कहीं ले ही जायेगी
कह दे अलविदा.. मुड़ के मुस्कुरा दे-
मुझे भी हुई परेशानियां जमाने में किसी से भी
वो नहीं बदला बल्कि मुझे आतताई करार दिया
खुद को बदल कर जिंदगी की जंग लड़ने चला
किसी का थोड़ा दिल जीता, खुद को पूरा हार दिया
भले वो मौत से एक पल पहले आबे हयात ले आए
ऐसे और जीने का ख्याल मैंने दिल से उतार दिया
छूटा घर-बार तो बनते गए परिवार कुछ यार
संभाला जिन्होंने मैंने उन्हें भी छोड़ उस पार दिया
एहसानों का कर्ज़ था और उसे चुकाना फर्ज था
अदा करते करते अपनी शख़्सियत को ही वार दिया
पहले गुस्से में नहीं लौटने की जिद कर लेता था
अब दिल ही नहीं मानता, लौटना ही नकार दिया
मैंने खुद में खुद को इतना ढूंढा सारी रात मगर
सुबह हुई तो पता चला मैंने खुद को ही मार दिया
अब इस जिंदा लाश में मुझे दिलचस्पी नहीं रही
गुनहगार कुछ वो भी है जिन्होंने कभी प्यार दिया-
ना किसी को खोने का डर ना तमन्ना पाने की
अब इच्छा ही नहीं होती कुछ कर जाने की
खुद पर शक होने लगा है मैं बदल गया क्या ?
और करो जुर्रत मुझे बार बार आजमाने की
हसीं लम्हे अब हसीं नही, बातें वही याद है
मैं तसव्वुर में था गमों की मुमकिनात लिए
मैंने बेहतरी चाही लेकिन किस जिंदगी के लिए
जहां खुद को टूटते देखा फ़िक्र की बात लिए
छोटी छोटी मांगें मैंने सिर्फ अपने लिए नही की
मेरे दिल मे बहोत डर है आने वाले कल का
जो उन डर के वजहों की पैरवी करते रह गए
मुझे हिस्सा नहीं बनना उनके शीशमहल का
मैं मोहब्बत भूल गया हूँ या पत्थर हो गया हूँ
आरज़ी से लगने लगे है एहसास इस कहानी में
मैंने नज़र-अंदाजियो के नतीजों में तबाही देखी
तेल की एक बूंद हो गया हूँ रिफ़ाक़त के पानी में-
क्योंकि, मर्द हूँ मर्दों को खूब जानता हूँ
पता तो करो कितनी हामियाँ धोखे में हुई
कितनी दफ़ा चाहतें 'मजे' की ही थी और
कब रज़ामंदी, फ़रेबी तरीके अनोखे में हुई
-
मौत के इतने करीब आकर
जिंदगी, ये एहसान मंजूर नहीं
अब तू कितना भी अपना बना
ऐ जान तेरा मकान मंजूर नहीं
जख्म तूने कई दिए छोटे बड़े
मैंने कहा भी था, न भर सकेंगे
मैं बेघर भटक लूंगा दर दर
तेरा घर आलीशान मंजूर नहीं-
आज बिखरे पत्ते कुछ समेटे
जो कभी थे मेरी शाख में
कुछ याद किये वो भी पल
जो गुजरे सिर्फ इत्तिफ़ाक़ में
मैंने आज माना के जिन दरों पे
मैं लौट के जलील हुआ,
वहाँ किसी की नजरें नहीं थी
मेरे आने की फ़िराक़ में-
अब ये मेरा घर, घर ना रहा
अब ये मेरा शहर, शहर ना रहा
प्यार भी शर्तों का मोहताज़ है
हमसफ़र, हमसफ़र ना रहा
दर्द, बयान के क़दर ना रहा
मरहम का भी असर ना रहा
सदक़े में खुदा से वो मांग बैठे
लकीरों में जिनका बसर ना रहा
ये किस्से अब किसको सुनाऊं
काबिले बर्दाश्त हशर ना रहा
फिर भी शिकायतें तो सुनो
कहते है के बशर, बशर ना रहा-