सारा खेल समय का है
हम बस अपना किरदार निभा रहे-
बदल जाने का इल्ज़ाम
सिर्फ तुम्हे ही क्यों दू
जब की समय के साथ साथ
मैं भी बदल गई हूं-
मेरे पास
बस एक ख्वाहिश पूरा करने दो
तुम्हारे सीने पर सर रख के
दिल की धड़कन सुनने दो-
समय तू नहीं सुनता मेरी
थोड़ा धीरे चलने के लिए ही तो कहा था
दो पल मुझे जी तो लेने दे
ज़रा बरसते बादल को देखने तो दे
इस खिलती धूप को महसूस तो करने दे
मां की बनाई रोटी को एक पल चैन से खा तो लेने दे
दोस्तों संग दो पल बचपन की बातें तो करने दे
सड़क के किनारे उन कुत्तों के छोटे बच्चों संग खेलने दे
मैं आज भी सर्दियों में पतंग उड़ाना चाहता हूं
रात के अंधेरे में तारों को गिनना चाहता हूं
बादलों में अपनी कल्पनाओं से चित्र बनाना चाहता हूं
पर तू है कि एक पल के लिए भी नहीं रुकता
निरंतर चलता रहता है, बढ़ता रहता है
तेज़ बहुत तेज़, हरदिन कल से भी तेज़-
अल्फाज़ो की दुनिया अनोखी है यारों। इन्हें ना कोई समय पे बोल पाया है,ना कोई समय पे समझ पाया है ।
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तुम्हारे लिए खुद को बदलने से,,,
अभी तो तुम खुश हो जाओगे...
मगर ,कुछ साल बाद यही बदलाव देख के,,,
अजनबी होने का इल्ज़ाम लगाओगे...-
आलस व्याप्त है सबके लिए लेकिन
दोनों में जंग जारी कल आज कल
आलस्य जीतता है ज्यादातर लेकिन-
किसी की राह देखते हुए किवाड़ पे नजरें टिकाए स्त्री, दीवार पे टंगी घड़ी की टिक-टिक के अन्तराल का समय भी महसूस कर लेती है।
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उठे थे आज यह सोचकर की,
आज बेहतर होगा...
अब सिर्फ उम्मीद है..
कल का दिन,
आज से बेहतर होगा... 🕵🏻♂️🧘🏻♂️-