क्या आप ज्ञ का सही उच्चारण जानते हैं ?
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'जी' भारत में आदर व प्रेम व्यक्त करने हेतु आम प्रचलित संबोधन है। 'आर्य' शब्द बिगड़ कर ( अपभ्रंश होकर ) 'अज्ज' हुआ और 'जी' इसी का संक्षिप्त सहज रूप है।'
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ॐ न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
भावार्थ- इस संसारमें ज्ञानके समान पवित्र(अन्य) कुछ भी नहीं है।
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युद्धान्मतचित्त चतुरविचारधुरी दुरितदुरी कृतान्तमते
निपातितखण्ड विदारणचण्ड श्रृंगनिजालय मध्यगते
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होते होंगे संस्कृत के बड़े-बड़े विद्वान
आज हम भी तो देखें एक इंसान
कृपया भाव स्पष्ट करें
उपरोक्त पंक्तियों का
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कैंटीन वाली चाय
याद है हमें वो कैंटीन वाली चाय जहाँ हम
अकेले कशमकश के फेर में बंधे सवालों
का जवाब ढूँढनें में वक्त बिता दिया करते थे,
आती हुई झरोखे से ठंडी हवा दिल को बड़ा
सुकून दे जाती थी, सवालों से घिरे जवाब
को तलाशने की कोशिश किया करते थे,
उलझनें कल भी उतनी थी आज उतनी है,
बदलाव बस इतना हुआ जगह बदल गई,
वो कैंटीन वाली चाय अब एक कमरे वाली
चाय बनकर रह गई, आज भी वही हम हैं
वही दिल में चलते सवालों के कशमकश
जारी है,समय का फेर तो देखिये अब जब
भी हाथ में चाय की प्याली आती है,
आज भी वो कैंटीन वाली चाय बहुत याद
आती है, सच में अक्सर यादें पुराने समय
में वापस ले आती है,-
सहजतया गृहीतः निर्णयः कदापि दोषपूर्णः न भवति
यद्यपि स्थितिः कियत् अपि जटिला भवेत् ?
हिन्दी अनुवाद
सहजता से लिया गया निर्णय कभी गलत नहीं होता
परिस्थिति चाहे कितनी भी जटिल भरी क्यों न हो?-
कमलदलामलकोमलकांतिकलाकलितामलभाललते
सकलविलासकलानिलयक्रमकेलिचलत्कलहंसकुले।
अलिकुलसंकुलकुवलयमण्डलमौलिमिलद्भकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१४॥
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महिषासुरमर्दिनी स्त्रोत
चौदहवाँ श्लोक
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अखंडित शुद्ध संस्कृत ये है
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