पत्तों और शाखों पे
मौसम आ गया है
ज़रा संभलना
अब बारी दिल की है-
कौन ? रखता याद, उन फूलों को........,
जो शाख से झड़ कर, ज़मीन पे ही, सुख जाए।
हमें तो, वो सुखा फूल बनना है, जो!
कोई अपने किताबों में, हमें, दफन कर जाए.......।।-
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते
वक्त की शाख से लम्हे नहीं टूटा करते-
सूखे पत्ते बन, झड़ जाए.... या.... !
नए पत्ते बन, तुम पे, ठहर जाए ।
बता....!
तेरे शाख पे, किस अदा से? नज़र आए ..।।-
उड़ गए सब परिंदे तेरे रूख से खिज़ा ,
ग़म शाखों का फिर भी हल्का न हुआ।-
टूटा पत्ता
कब किससे कहा है मैंने,
कोई मेरा इंतजार करे ।
मुझमें भी कभी था जीवन,
क्यों इसका अहसास करे ।
Read my caption's-
जो फूल
अपनी शाख से टूट कर
गिर जाया करते हैं,
वो न चमन के ही रहते हैं
और न धूल के!
सूख कर मुर्झाया करते हैं;
वो फूल...
जीते-जी मर जाया करते हैं
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कुछ पत्ते शाख पे पीले हो गए कुछ ज़मीन पर सुख गए
वक़्त का आलम जो बदला नए पत्ते फिर से खिल गए ।।-