जो व्यंग्य श्रोताओं में केवल हास्य उपजाऐ विचार नहीं, वह व्यंग्य पौरुषहीन पुरुष के समान है।
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हे शूर्पनखे की नाक!
राम के पुरुषार्थ की तो बढ़ा-चढ़ाकर चर्चा की जाती है, लेकिन शूर्पनखा की बेचारी नाक को कोई नहीं पूछता। हम पूछते हैं कि यदि शूर्पनखा के नाक न होती और होने से ही क्या होता है, होकर के भी कटी न होती, तो राम के पुरुषार्थ को कौन पूछता?-
भले डांट घर में तू बीबी की खाना, भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना, मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही ज़िन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चूमतें है
लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे
हथेली पे सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)-
"जब खरगोश सो कर उठा,
उसने देखा कि कछुआ आगे
बढ़ गया है,
उसके हारने और बदनामी
के स्पष्ट आसार हैं।
खरगोश ने तुरंत
आपातकाल
घोषित कर दिया"-
एक रचना को कहा था, बीस कविता पेल दी
ऊब कर श्रोता मरेगा, क्या करेगी चाँदनी?
एक बुलबुल कर रही है, आशिक़ी सय्याद से
शर्म से माली मरेगा, क्या करेगी चांदनी?
गौर से देखा तो पाया, प्रेमिका के मूँछ थी
अब ये ‘हुल्लड़’ क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी?
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)
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कविताएं छपती नहीं। कहानियां खपती नहीं। उपन्यास का प्लॉट नहीं। कोई परिचर्चा एलॉट नहीं। तब या तो लिखो कव्वाली या बैठे-ठाले बको गाली। गाली भी व्यंग्य का एक प्रकार है। नये साहित्य में उसी की भरमार है। पेशे से टीचर, लिखने लगे फीचर। जब चढ़ा शनीचर। होगए फटीचर। पूछने लगे अब कैसा लिखता हूं। अब लाला की उधार का हिसाब नहीं, व्यंग्य लिखता हूं।
विद्यालय का नया नाम रोमांसालय है। सयानी लड़कियां यहां इसलिए आती हैं कि वे अधिक-से-अधिक माता-पिताओं की नज़रों से दूर रहें। लड़के इसलिए आते हैं कि 'एलएसडी' के नशे में चूर रहें। अध्यापक पुस्तकें नहीं पढ़ाते, उन्हें यथार्थ जीवन जीना सिखाते हैं। शकुंतला से लेकर उर्वशी तक का प्रेक्टीकल कराते हैं। सिनेमा कुंज-गृह और रेस्तरां है संकेत-स्थल। हिन्दी भी कोई ज़ुबान है, अंग्रेजी भाषा और साहित्य ही है निर्मल गंगाजल।
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|| योरकोट होली समाचार ||
हाल ही में देखने में आया है कि हर्ष स्नेहांशु ने मोदी जी से दुनिया का नक्शा लिया और कदम बढ़ा लिए हैं योरकोट का चौकीदार बनने की ओर। यह फोटो देखते ही देश में लहर दौड़ गयी।
कई जगह पर घरवालियाँ अपने मर्द को फ़ोटो दिखाने दौड़ीं, यह गाते हुए कि पहली बार कोई हॉट लड़का राजनीति में उतरने जा रहा है। बिना बनाए ही यह अफ़वाह फैल गयी कि हर्ष स्नेहांशु ने भारतीय कोट पार्टी बनाने का निर्णय कर लिया है और आगामी लोकतांत्रिक चुनाव में भाग लेंगे। हमेशा की तरह उनका चुनाव चिन्ह एक "inverted comma" है।
इस ख़बर से जहाँ बाँसठ उम्मीदवारों ने अपने नामांकन वापस ले लिए हैं, वहीं कुछ नए लोगों की आंखों में खुशी के आँसू भर दिए हैं। हमारे साकेत भाई ने आखिरकार राजनीति में उतरने का फैसला कर लिया है और हर्ष को खत लिख कर भेजा है कि "अब से अजमेर तुम्हारा भाई चलाएगा।" यह देखके उनके प्रशंसकों ने काफी काम फ्री में कर दिया। कुछ ने इलाज और कुछ ने रिश्वत न लेने की कसम खा ली। हर्ष यहाँ से निश्चिंत हुए ही थे कि प्रसून भाई और अवधेष भाई ने भी अपने शहरों से चिल्ला चिल्ला कर "योरकोट बाबा की जय" के नारे लगा दिए।
(अनुशीर्षक)-