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ठीक वैसे ही मेरे ज़िन्दगी में गम रहती है
जैसे किसी फूल पर शबनम रहती है-
मर-मर के उनके इश्क़ में हम इस क़दर जीते हैं
इश्क़ में टूटे हुए दिल को गम के धागों से सींते हैं
अब तक बहुत पैसा बर्बाद किया इंग्लिश पीने में
अब तो अपने गांव के ठेके से देसी ठर्रा पीते हैं-
वैसे तो हर दिल पर राज करते हैं हम ,,
जो रूठ जाये उसे मना लेते हैं हम,,
माना की कम ही मिलते हैं सबसे हम,,,
पर जब भी मिलते हैं मुस्कुरा देते हैं हम.
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हाथों में प्याला कॉफ़ी का लेकर वो पार्क आई थी
चेहरे पर उसके एक अलग तेज़ और चमक समाई थी
वैसे तो सूरज की धूप ईद का चाँद हो गई हो जैसे
मानो उसका दीदार करने आज धूप भी निकल आई थी-
सीमाएं बांध कर रखती हैं
मन को
उस निश्चित दायरे में
जिसे सभ्य सुसंस्कृत
मानदंडों का प्रमाण कहते हैं!
रोने हंसने की सीमाएं तय हैं
अन्यथा
उच्छृंखल अथवा मानसिकता विक्षिप्तता
मुंह बाए खड़ी होती है
पहचान बदलने की खातिर
रोज एक नये संघर्ष को
जीतना ही जीवन है
हार कर मरने से
बेहतर!
प्रीति
३६५ :५९
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हाथों में प्याला कॉफ़ी का लेकर वो पार्क आई थी
चेहरे पर उसके एक अलग तेज़ और चमक समाई थी
वैसे तो सूरज की धूप ईद का चाँद हो गई हो जैसे
मानो उसका दीदार करने आज धूप भी निकल आई थी-