ब्राह्मण हिंदुत्व की 'आत्मा' है
और क्षत्रिय हिंदुत्व का 'बल'
वैश्य हिंदुत्व का 'वैभव' है और
दलित हिंदुत्व का 'स्वाभिमान'🙏-
मे ज्ञान मे ब्राह्मण हूं ,
रणभूमि पर क्षत्रिय हूं,
व्यवसाय व्यापार कार्य मे वैश्य हूं
और सेवा करने में शूद्र हूं ।-
कोई ब्राह्मण, कोई क्षत्रिय, कोई वैश्य तो कोई है शुद्र
पर सच कहूं जिस शरीर में हम रहते हैं इसकी कोई जाति नहीं इसकी जाति सिर्फ मिट्टी है इसीलिए मैं स्वयं को मिट्टी मानता हूं और मेरी जाति भी मिट्टी है क्यूंकि चाहे कुछ भी हासिल हो इस जग से अंत तो ये शरीर मिट्टी है , अगर अंत मिट्टी है तो मिट्टी ही क्यूं ना रहा जाए इसका अर्थ यही है की जाति के कारण भेद भाव क्यूं, भेद भाव छोड़ प्रेम से क्यूं न रहा जाए किसे पता कब उड़ जाए आत्मा रूपी पंछी इस मिट्टी से बने शरीर से ।-
इन चारो में से कुछ भी होने पर पूर्ण समाज का विनाश निश्चित हैं।
१. ब्राह्मण को अहंकार,
२. क्षत्रियों की बेलगाम ललकार,
३. वैश्यों को नुक्सान
और
४. शूद्रों का अपमान।-
कोई ब्राह्मण है
कोई छत्रिय है
कोई वैश्य है
कोई श्रुद है
पर कोई बता सकता है
इनमे इंसान कौन है?-
मैँ स्वर्ण था, वैश्य ने आकर वशीभूत कर लिया,
मैँ भाव था, वर्ण ने आकर अभिभूत कर लिया।-