शुद्ध 24 कैरेट जैसी
"मान कषाय"मानव जाति में
अमिट नाम,कुल,जाति,
ज्ञान,रूप की लालिमा
चरमोत्कर्ष पर है,,
विनय की मंद अग्नि में
सुनो..... तपाते हैं,,
मृदुता एक अंलकार बना
स्वात्म को अंलकारित कराते हैं
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पता....ताप.... तप है
मान.....तापमान नहीं
झुलसने से बचाव
जब मान का गलनांक
शत प्रतिशत चाव होगा
स्वर्णकार के प्रति समर्पण
तभी तो निर्मित.......
कंठ में कोमल कुसुम हार
का ठहराव होगा!!
24.8.2020-
# 23-01-2021 # गुड मार्निंग # काव्य कुसुम #
# विनय # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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विनय और विवेक ही हमारे जीवन को महान बनाते हैं।
विवेकशील, विनय को ही सद्गुणों की खान बताते हैं।
विवेकपूर्ण जीवन जीने से मानव जीवन सार्थक होगा -
विनम्रता से परे विवेकहीन जीवन में कूपमंडूक कहाते हैं।
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# 01-09-2021 # काव्य कुसुम # पहचान #
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अपने आपको पहचान लेने से ही हमारा जीवन सार्थक होगा।
बना न सके पहचान कोई भी तो हमारा जीवन निरर्थक होगा।
अपनी पहचान बनाने के लिए विनय ही मानव का भूषण है -
बना न सके अपने को विनययुक्त तो हमारा जीवन निरर्थक होगा।
== गुड मार्निंग == जय श्रीकृष्ण, == शुभ प्रभात ==-
# 21-10-2021 # काव्य कुसुम # विनय-विवेक #
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मानव जीवन तब तक सार्थक जब तक हाथ में डोर पतंग है।
हो न विनय-विवेक जिसके जीवन में तो ज्यों बिन डोर पतंग है।
बिन पानी ज्यों तड़पत मीन त्यों तड़पे मनुज बिन विनय-विवेक-
विनय-विवेक बिन मानव जीवन व्यर्थ ज्यों टूटी डोर पतंग है।
==गुड मार्निंग ==जय श्रीकृष्ण ==शुभ प्रभात ==-
साध लेकर मिलन का तड़पती रही
प्रेम की आग तीखी है जलती रही
अधूरा स्वप्न हो पूरा विनय करती रही
जिंदगी की कहानी बस अधूरी रही-
# 03-09-2022 # गुड मार्निग # काव्य कुसुम #
# इनसान # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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इनसान में इनसानियत का भाव होना चाहिए।
इनसान होकर हैवानियत का भाव खोना चाहिए।
विनय, विवेक, सहजता व सरलता का अवलंबन हो -
इनसान को सुसंस्कारित होकर चैन से सोना चाहिए।
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# प्रमोद के प्रभाकर भारतीय # नियर एम डी एच #
# ताऊसर रोड़ # नागौर ( राजस्थान )
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शरीफ इंसान शराफत की
वजह से चुप रह गया
और सुनाने वाले ने समझा की
उसे जवाब देना ही नहीं आता-
मेहनत और गुणों के सहारे
आदमी सफल होता है पर
विनय और विवेक
साथ हो तो
शिखर छू जाता है।
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ले दे कर मैं ये ही कहूंगी
तुमसे ये ही विनय करूंगी
स्वविवेक का उपयोग करो
धन मान के पीछे मत भागो
फिर जो कहोगे वो मैं करूंगी
तुमसे ये ही विनय करूंगी
तुम मुझको सब कुछ बतलाना
मुझसे देखो ना कुछ छिपाना
राज़ तुम्हारे सब रख लूंगी
तुमसे ये ही विनय करूंगी
तुम रूठो खूब पर मन जाओ
गुमसुम हो ना ही तड़पाओ
बिन सुने तुमको जी ना सकूंगी
तुमसे ये ही विनय करूंगी
अरे क्यों पागलपन करते हो
गलतियों पर अपनी लड़ते हो
बार बार ये सब ना सुनूंगी
फिर तुमसे ये विनय करूंगी
हम दो हैं जैसे नदी के तट दो
नयन नीर भरे जैसे घट हों
कोई बात नहीं सब कह सह लूंगी
बस तुमसे ये ही विनय करूंगी
समझते हो तुम मुझको कितना
नहीं जानती मैं खुद को उतना
चाहे कुछ कहो तुम्हें फिर टोकूंगी
फिर तुमसे ये विनय करूंगी-
विद्यासागर का अमृत -फल
दुष्प्रवृतियों का नियामक है विनय,,
विशववन्द्य मानवता का विभूषण
सद्प्रवृतियों का प्रतीक है विनय ।-