यूँ ते लिखने के लिए शब्द नही मिलते
एक बार उन्हें क्या याद कर लो,फिर हाथ ही नही रुकते।-
लग जाते जब हैं खुद से खुद को मिलाने के सिलसिले
रुक जाते हैं दुनियावी शिकायतों के सिलसिले . . .-
कुछ आंसू दिल से बहे और
कुछ दिल में ही ठहर गए ।
कुछ आंखों तक पहुंचे,
और बह गए,
कुछ आंखों में ही रह गए।।-
बहुत आरज़ू थी गली की तेरी
चलते चलते क़दम रुकते गए
ओर हम मंज़िल से दूर होते गए।
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ठहर जाओ कोई बहाना बना कर
जो तुम पास आती हो तो
जाने देने का दिल नही करता।
सारी उम्र गुजारू ग़र जो तुम्हारे साथ
तुम्हारी बातो का सिलसिला को
खत्म होने देना नही चाहता।
जो तुम पास आती हो
तो जाने देने का दिल नही करता।
तुम्हारी रूह में ग़र जो मेरी रूह उतर जाए
फिर सात जन्मो तक
मैं खुद को तुझसे अलग होने देना नही चाहता।
जो तुम पास आती हो तो जाने देने का दिल नही करता-
रुकते रुकते जाने क्यूँ चल पड़ते है
दबे क़दम लिए फिर निकल पड़ते है
इसे राहों की ख्वाहिश समझे
या मंज़िल की मर्ज़ी सनम
कही पहुँचना भी नही चाहते
मुसलसल भी सफर करते है-
तेरी ये उदासी देखी नहीं जाती
मना करने पर भी दोस्ती तोड़ी नहीं जाती
Block करना हैं तो कर दो तुम
पर मुझसे ये खामोशी देखी नहीं जाती-
जब जाने का सोच ही लिया था,
तो बता कर चले जाते,
वादा तो था ही! हर फ़ैसले का सम्मान करेंगे।
ना कोई सवाल करेगा! ना जबाव देना किसी को।-
क्यू किसी के इंतजार में रुकते रहें हम,
जब सफर अकेले ही करना है
तो क्यों मंज़िल सिर्फ देखतें क्यों रहे हम.-