सांवरिया है छैल छबीला
नटखट है बावरिया
फागुन के जो रंग
उड़ाए मेरा गिरधर गोविंदा
रास रचाए माखन खाए
अबीर गुलाल उड़ाए ...
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6 MAR 2020 AT 12:20
30 MAR 2021 AT 0:20
वो रंग भरी रातें झर जाती हैं !
उनकी सुगंध नहीं झरती !
अटकी रहती है कहीं किसी सूनेपन में !-
24 MAR 2021 AT 21:37
उड़ा गुलाल जब संग गुलाब
रंग दिया मन को काशी ने आज
पर्व था रंग का एकादशी था आज
सजी थी गौरा महादेव के साथ-
4 MAY 2021 AT 6:46
रंग बदलती इस दुनिया में-
समय बदलता रहता है,
जाने क्यों हम रोते रहते हैं,
ना जाने क्या खोते रहते हैं !
कोई दुनिया ठोकर पे रखता है,
कोई ठोकर खा कर उठता है-
इंसा हर अपना वक्त बिता कर,
दुनिया से उठता रहता है !
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