" वहां साँझ ढले यहां इक उम्र ढले
वक़्त के ना जाने कितनी फ़लसफ़ा ढले "
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--- --- काव्यांजलि --- ---
--- --- अनुशीर्षक में पढ़िए --- ----
इक शाम हो मस्तानी
ऐसे में तुम आ जाओ....
फिर कभी लौट के न जाओ,
मैं सुबह सुहानी तुम सूरज बन जाओ,
मैं गुलाब लाल तुम महक बन जाओ...
तुम तपिश रूहानी,
मैं महकता इश्क़ बन जाऊं...
मैं तेरी आशिकी,
तुम आशिक बन जाओ...
तुम कभी न मुझसे दूर जाओ,
रब करे तुम मेरे सिर्फ मेरे बन जाओ...
भूल जाएं रंजो ग़म दुनियां के,
हम रस्म-ए-इश्क़ ही बस अदा करते जाएं,
मैं सुबह सुहानी तुम सूरज बन जाओ,
मैं इश्क़ और तुम रूह बन जाओ...
इक शाम हो मस्तानी
और तुम आ जाओ....
#अक्स-
ये शाम मस्तानी मदहोश किए जा
मुझे जो कोई खींचे तेरी ओर लिए जा-
।। कहीं अगरबत्ती की खुशबू
कहीं बुझती हुई दिया की सुगंध
कहीं डालडा घी से सेंका हुआ पराठे की महक
और मेरे हाथ में पकड़ा हुआ चाय की गर्माहट
जेहन में दोस्तों की यादें
इस से प्यारा शाम और कुछ हो सकता है क्या ।।-
ये शाम और तेरी याद
चली आतीं है बिना पूछे
ये छूने मेरी रूह को
चली आतीं है बिना पूछे
मदमस्त सी हवाएं और तेरी यादों की बरसातें
मुझे बिना बादल भिगाने, चली आतीं है बिना पूछे-