-
कुंती को वनवास जीवन बहुत पहले चले जाना चाहिए था
किंतु वह इसे टालती रही,
युधिष्ठिर ने सपाट सुर में कहा "
"मैं सब कुछ परीक्षित को छोड़कर
हिमालय की शरण में जाऊंगा'
"आपको' धृतराष्ट्र काका गांधारी काकी के साथ चले जाना चाहिए,"..
पर कुंती को ऐसी बातें अपने पुत्र से क्यों सुननी पड़ी!
जब से युधिष्ठिर को कर्ण के बारे में पता चला था
तब से वह खींचा-खींच बर्ताव करने लगा था
"वह लोग युद्ध को टाल सकते थे'
इस युद्ध के लिए वे नहीं!" द्रौपदी उत्तरदायित्व थी, "
कुंती ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढका
और अपना मुंह घुमा लिया!...
कुंती ने कुछ नहीं कहा और वह विदुर के पीछे चल पड़ी,
ताकि उनका शेष जीवन सत्य के मनन में बीत सके "
कम से कम उन्होंने यही सोचा होगा
परंतु क्रांतिकारियों की लगाई आग उन्हें निगल गई
कर्म के कटु फल से भी कोई भला बच सका है।....
..-
आगाह थे हम शकुनि इश्क के दाँवों से
दिल युधिष्ठिर था मगर, हारता चला गया-
अकसर हमने सत्य को छल से ही परास्त होते देखा है;
चाहे वह हमारा वर्तमान हो या भूत ।
रहस्य कुछ भी हो ;
युधिष्ठिर ने अपने शब्दों के माया-जाल ,
और अर्जुन ने शिखंडी का सहारा लिया था ।।-
🍁 THIRTY EIGHT पहेलिकाव्य - 38🍁
🌺पहेलिकाव्य प्रतियोगिता 4,🌺
"सतरंग जनित कलित सारंग
बिन विशिख संग नाम है,
श्वेत वाहन, तड़ित आयुध
विचरता सुरधाम है !
है कपट, कातर, मद विभूषित
वरणनीय न काम है,
दोउ नेत्र छिद्र सहस्र चक्षु
कर्म सम परिणाम है !!"
प्रतियोगिता के नियम नीचे caption में उल्लेखित हैं 👍
इस 🌺पहेलिकाव्य प्रतियोगिता 4🌺, ⭐पहेली-38⭐ का उत्तर comments में दें 👍
(पिछली पहेलिका - 37, "ज्येष्ठ पुत्र क्रीड़ा अधम...... . त्यज्य गए सुरधाम ", का उत्तर एवम् विश्लेषण कैप्शन में देखें )-