मैं नही जानता मैं क्यूँ लिखता हूँ,
बस ये खाली पन्ने मुझसे देखे नही जाते।-
अब के बिछड़ गये हैं दो जिस्म तो क्या,
अभी तो दो रूहों का मिलना बाकी है।
तस्वीर बना दी मैंने उस सादे वरक पे फिर,
जो है नहीं उस परी का उतरना बाकी है।
अपनी आग पे सूरज को हो चला है गुमाँ,
स्याह रात में तारों का निकलना बाकी है।
तुमने जो देखा असल में वो नहीं देखा,
मुझ में से इक सूफ़ी निकलना बाकी है ।।-
मेरी हर उल्फत में थोड़ी उजलत है ;
आदित्य हूं , वक्त से ढलना फितरत है ।-
जिस नजाकत से लहरे
पैरों को छूती है,
यकीन नही होता
इन्होने कभी कश्तियाँ
डूबाई होगी ।-
तुम हमें भूल जाने की भले ही भूल करते रहो...
हम रोज़ याद आने का बहाना तलाशते रहेंगे ।-
बिच से टूट गया जिस्म तमाम खराशें निकली,
हमने जब खुद को तलाशा कई लाशें निकली ।-
झुक जाऊं तेरे साजदे में तू इशारा तो कर,
तेरा मेरा हर एक अफसाना हमारा तो कर ।-
गमों से लिपट के मैं
उससे कभी मिला नहीं ।
बरबाद उसी ने किया मुझे,
उसे भी गिला नहीं ।
कसमें, वादें और सिर्फ वो सच बोलने वाली,
ज़हर उगलती है,
फिर भी उसका गला गीला नहीं ।।-
ख़ाली हाथों को कभी गौर से देखा है,
किस तरह लोग लकीरों से निकल जाते हैं-