अब के बिछड़ गये हैं दो जिस्म तो क्या,
अभी तो दो रूहों का मिलना बाकी है।
तस्वीर बना दी मैंने उस सादे वरक पे फिर,
जो है नहीं उस परी का उतरना बाकी है।
अपनी आग पे सूरज को हो चला है गुमाँ,
स्याह रात में तारों का निकलना बाकी है।
तुमने जो देखा असल में वो नहीं देखा,
मुझ में से इक सूफ़ी निकलना बाकी है ।।
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