यार वो पल भी थे क्या खाश,
न थी कोई मंजिल न थी सफलता की प्यास;
थे एक दूजे के यार रहते थे मस्तमौला बिंदास॥
यार वो पल भी थे क्या खाश,
रहते थे मिल बांटके चखते एक दूजे के प्यार का स्वाद:
थे शैतानी के बादशाह बजते थे चुटकुलों के भी नाद॥
यार वो पल भी थे क्या खाश,
जीते थे हर एक पल दुख हो या फिर सुख;
हंसना पहला काम था भले चाहे जिंदगी जाये रूक॥
यार वो पल भी थे क्या खाश,
फिर आया वो एक मंजर जहाँ हो जाना था जुदा;
आये न एक आंसू आंखों में पर बाद में याद आया खुदा॥
यार वो पल भी थे क्या खाश,
यादें तो है साथ पर हम नहीं है पास;
आज भले है दोस्त कहने वालों
के गाज पर नहीं उन यारो सा एहसास॥
यार वो पल भी थे क्या खाश!
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