satish patel   (सतीश पटेल)
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Joined 11 February 2019


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Joined 11 February 2019
10 APR AT 10:48

मिलते ही मुस्कुरा देना,उनकी अदा हो गईं हैं।
कुछ लोग मोहब्बत समझते हैं इसे.......

पर वो पहले किसी ओर को हो गई है।
अब तो दर्द है जो मुस्कुरात में छिपा लेती है।


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20 SEP 2022 AT 19:28

इश्क में डूबी हुई नाव देखी है।
बड़ी ख़ूबरूरत पर लहरो से डरती देखी है।

कुछ कह दिया था मैंने तब से उलझते देखी है।
अब वो मुझे नाव में बैठने भी न देती .......

कर के किनारा अब तंज कसती है।
अच्छा बुरा कुछ नही बस सभी मे वो अब खुश रहती है।



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20 SEP 2022 AT 19:11

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15 SEP 2022 AT 22:59

इन हवाओ का रुख अब बदला सा लगता है।
वो मधुरता न रही,ऐसा बसंत के फूलों को लगता हैं।
भौरों का बेरुख मन,उदासी का आँचन बुनता है।
लाख करे कोशिश,सब कुछ सही करने का ....
फिर भी वो बसंत का मधुर मेला न लगता है।

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4 SEP 2022 AT 10:40

आज कुछ किए जो कल के लिये अच्छा किया होगा।
समझने में थोड़ा वक्त लगेगा... कि क्या किया होगा।

हम जानते है इन दूरियों से आप का ही भला होगा।
आज हम नीम से कड़वे है पर इसी से कल इलाज होगा।

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1 SEP 2022 AT 12:56

रिम झिम बरसात का मौसम,खेत मे खिलती हरियाली है।
ठंडी हवाओं के बीच एक बार फिर उनकी याद ताजी है।

हमने भी नदियों की तरह चलना सीख लिया है।
कोई आये कोई जाए क्या फर्क पड़ता हैं, उन्होंने तो उड़ना सीख लिया है।

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3 JUL 2022 AT 20:37

ऐसा क्या है उनमें जो मुझे हर रोज डुबा जाता है,
क्या वो समंदर है जो मुझे नदियों की तरह खींच लेता है।

मुझे नही पता कि उनकी आँखों मे कितना नशा है,
मगर ये नशा मुझे हर दिन मयख़ाने तक खींच लेता है ।

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28 JAN 2022 AT 22:54

हम उनसे हर दिन अपनी दिल की बात कहते है।
लौट जाओ अपने शहर को,यहाँ काँच के टुकड़े बनते है।
कोई दर्द न पूछता ,क्योकि एक कीमत अदा करते है।
ये दुनिया का वसूल है,जहां जरूरत नहीं वहाँ रिश्ते नही पनापते है।

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24 NOV 2021 AT 15:05

लाख कोशिश करू,पर वो साथ नही छोड़ती है।
अंदाज मेरे बुरे से है,फिर भी नाराज न होती हैं।
हर बार मुस्कुरा के पूछना...क्या हाल है ज़नाब..
कह देते है सब कुशल मंगल,बस आप की किस्मत में हम न है ज़नाब



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8 OCT 2021 AT 11:16

चंद रुपयों के लेंन देंन से बोल चाल बंद हो जाता हैं।
मांग लो पैसे तो लड़ने घर पहुँच जाता है।

हमारा फोन आते ही उनका मोबाइल बीमार हो जाता हैं।
गली में बोल दो तो सात बात सुना कर जाता हैं।

अपने ही पैसे के लिए बार बार लड़ना पड़ता है।
ऐसे मास्टर पीस को भगवान भी समाज मे गढ़ता है।

अब इनका क्या किया जाए.......थोड़ा आप बताए।
हम तो रुपय भूल के ,अगली बार अंगूठा दिखया।

इनसे कैसे बचा जाए... एक अभियान चलाए.....
आपसी संगती से मेहनत की धनराशि बचाए.....


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