QUOTES ON #यादोंकीतितलियां

#यादोंकीतितलियां quotes

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6 OCT 2017 AT 7:33

कविता की ये पंक्तियाँ हमेशा ही मुझे ‘नॉस्टैल्जिक’ बना देती हैं. भूली बिसरी इन यादों की तितलियों को पकड़ कर और उन्हें बन्द मुट्ठी में कुछ देर महफूज़ रख कर उड़ा देने में जो अनुभूति होती है उसे ही शायद ‘नॉस्टैल्जिया’ कहते हैं. उस तितली को निहारते-निहारते मैं अपनी यादों के उपवन में चला गया जहाँ वह उड़ते-उड़ते पहले फूल पर जा बैठी.

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25 OCT 2018 AT 8:22

यादों के घने जंगल से ..रोज़ ही गुजरते हैं
सपनों के टीले बैठ रंगों से संवरते हैं
देर तक उदासी आकर पास बैठ जाती है
फिर किसी उड़ी खुशबू के संग चल भी पड़ते है!

प्रीति

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19 JUL 2020 AT 17:53

वो जो दरीचे पर परिंदा आकर बैठा
एक खत उसका मिरे नाम छोड़ गया

आसमान का मिज़ाज देख कर भी वो
मिरे दरीचे पर एक फूलदान छोड़ गया

अब तो अब्र भी नाराज हो गया मुझसे
बारिश में भी एक रेगिस्तान छोड़ गया

जिनकी दीवानी हुआ करती थी रौनकें
वो ही हमारा जहां सुनसान छोड़ गया

कि अब के बरस तो सावन भी ना आया
बरसा हर तरफ मेरा ही मकान छोड़ गया

वो जो हर पल साथ निभाता था परिंदा
कई दिनों से मिरा रोशनदान छोड़ गया

अब के जो बिछड़े तो फिर ना मिलेंगे
मेरा भेजा हुआ हर सामान छोड़ गया।।



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6 OCT 2017 AT 7:24

उस दिन न जाने क्यूँ मुझे अपने बचपन की खोई हुई गलियों की बेहद याद आई. राजेन्द्रनगर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में बैठा मैं अपनी ट्रेन के आने की प्रतीक्षा में लाउडस्पीकर से लगातार हो रही उद्घोषणा सुन रहा था और आते-जाते यात्रियों को देख रहा था. रेलवे स्टेशन पर ट्रेन की प्रतीक्षा करना बड़ा ही बोरिंग होता है. प्रतीक्षा की इन घड़ियों को अक्सर मैं किताब पढ़ कर काट लेता हूँ. पर उस दिन मेरे पास कोई किताब न थी इसलिए ऊबने के सिवा मेरे पास कोई चारा न था. तभी अचानक एक ख़ूबसूरत सी तितली मेरी हथेली पर आ बैठी. कुछ देर मैं उसे देखता रहा और उड़ाने वाला ही था कि बचपन की वही कविता मुझे याद आ गई, " रेल के किनारे, टीले पर बैठ कर,यादों की तितलियां,उड़ाता रहा निरुद्देश्य...!!

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5 OCT 2017 AT 7:21

और तितली?
तितली के बारे में मैंने जब भी सोचा है, उसने मुझे अन्दर तक छुआ है. स्कूल के दिनों में ‘आर्गिमोन’ की कटीली झाड़ियों में लगभग एक ही रंग की तितली दिखती थी-पीले रंग की. पंखुड़ियों पर कोई नक्काशी नहीं, बस केवल सादा पीला रंग. उस तितली को पकड़ने की हम हमेशा कोशिश करते, कारण यह था कि उसको पकड़ने से हमारी ऊँगलियों में पीला रंग लग जाता था. यह करीब हमारा रोज़ का नियम था. इस बात ने मुझे हमेशा प्रेरणा दी कि कैसे एक दुर्बल-सी, कोमल-सी पर बेहद आकर्षक, सृष्टि की यह छोटी सी रचना जीवन का वह पाठ सिखा देती है कि संसार में छोटा-बड़ा कुछ भी नहीं. गुण हो तो सम्पर्क में आने वाला हर व्यक्ति गुणी के ही रंग में रंग जाता है.

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28 DEC 2018 AT 12:31

श्रद्धावान लभते ज्ञानं..
(पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें)

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6 OCT 2017 AT 7:11

इन्हीं यादों की तितलियों में से कुछ रंग-बिरंगी तितलियों को पकड़ने की कोशिश की है मैंने. मेरी यादों की तितलियाँ यदि किसी कंटीले पौधे की ओर रुख़ करेंगी भी तो निश्चित ही उस पौधे पर जो फूल होंगे उनमें उन्हें शहद का ही रस मिलेगा. यह सच है कि घृणा से दुख उपजता है और यह भी सच है कि दुख को बाँचने से दुख में ही वृद्धि होती है. पर दुख कुरेदने में मजा भी देता है और यदि उससे त्राण मिले तो दुख वर्णित होना भी चाहिए. इसीलिए मैंने दुखों के काँटों के जंगल में भी सुख के रास्ते तलाशने की कोशिश की है.

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6 OCT 2017 AT 7:01

मेरे ज़हन में कई फूल खिले हैं और उनपर बैठने के लिए कई तितलियाँ भी उड़ रही हैं. अबतक के जीवन में अच्छी घटनाओं के साथ कई बुरी और तल्ख घटनाएँ भी घटीं. मैं कोई अपवाद भी नहीं...सबके साथ घटती हैं पर मैं जब भी उन घटनाओं को याद करने बैठता हूँ तो मेरे ज़हन में उड़ती हुई तितलियाँ उन घटनाओं के काँटों पर बैठने से इंकार कर देती हैं और मुझे हिदायत भी देती हैं कि उनकी पसन्द फूल हैं, काँटें नहीं. ‘आर्गिमोन मैक्सिकाना’ एक कंटीला पौधा है जिसके फूल पीले रंग के होते हैं. इस पौधे पर भी तितलियाँ पीले फूल पर ही बैठने जाती हैं, काँटों पर उनका ध्यान नहीं जाता. उनके नाजुक पंख कभी भी काँटों में नहीं उलझते.

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16 JUL 2018 AT 15:21

सच कहती हूँ झूठ बोलने
की आदत नहीं मुझे
इक तेरे सिवा किसी
और की चाहत नहीं मुझे,

ऐ- यारा,अपने बारे में
सोचूं किस तरह मैं
एक पल भी तेरी यादों
से फुरसत नहीं मुझे...!!!!

🍁संतोष गुड़िया🍁

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13 JUL 2018 AT 21:41

हम भी देखेंगे किसी रोज़, खुद पर ये तजुर्बा कर के,
कैसा लगता है दिल को, तेरी यादों से जुदा कर के....!!!!
🌸संतोष गुड़िया🌸

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