खोजने निकली थी तेरी परछाई।
जाने अनजाने कई चेहरे दिखे,पर दिखा न तू कहीं।
घबराई सी थी मेरी रूह अब,कैसे तुझे यादों में खो दिया मैंने।
सोचती थी मैं , हूँ ठहरी उसी पल में
पर देखो ना कहाँ आ गयी हूँ मैं।
पलट के देखती हूँ ,तुझे खोजती हूँ,अपने दिल की गहराइयों में
कुछ यादों के फूल तेरे अब खिलें हैं,जो मद्धिम मद्धिम खुशबू से,मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर जाते हैं।
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